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जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...133 उद्देश्य से अनेक मंडपों का निर्माण किया जाता है। आधुनिक युग में गर्भगृह के सामने के भाग में लम्बा हाल बनाने की प्रथा चल पड़ी है। शिल्प शास्त्रों के निर्देशानुसार गर्भगृह के ठीक बाहर गूढ़ मण्डप का निर्माण करना चाहिए। उसके आगे चौकी मण्डप, उसके आगे रंग मण्डप अथवा नृत्य मण्डप का निर्माण करवाना चाहिए। शेष सभी देवों के गंभारों के आगे तोरण युक्त बलाणक (द्वार के ऊपर का मण्डप) निर्मित करना चाहिए। इस प्रकार गर्भगृह के बाह्य भाग में कुल चार मण्डप की रचना करनी चाहिए।53
उल्लेखनीय है कि गूढ़ मण्डप में पूजा करने वाले पंक्ति बद्ध खड़े रहते हैं. चौकी मण्डप में मन्दिर विधि, जाप, ध्यान आदि क्रियाएँ की जाती है तथा रंगमण्डप में बृहद् पूजाएँ, भक्ति गान आदि किये जाने चाहिए। द्वार
मन्दिर में प्रवेश करने के स्थान पर द्वार का निर्माण किया जाता है। प्रमुख प्रवेश के स्थान पर मुख्य द्वार तथा भीतर में सामान्य द्वारों का निर्माण करते हैं। मुख्य द्वार मन्दिर का प्रमुख अंग माना जाता है इसलिए उसका निर्माण शास्त्र प्रमाण युक्त गंभीरता पूर्वक किया जाना चाहिए। द्वार निर्माण में रखने योग्य सावधानियाँ
द्वार का निर्माण करते समय कुछ मुद्दों पर विचार करना आवश्यक है जैसे1. गर्भगृह, प्रतिमा एवं द्वार इन तीनों के आकार में एक निश्चित अनुपात
का होना जरूरी है। अन्यथा विपरीत परिणाम आते हैं। 2. मन्दिर का मुख्य द्वारा मूलनायक प्रतिमा के ठीक सामने होना चाहिए।
गर्भालय का द्वार भी आगे के दरवाजे के समसूत्र में रखना चाहिए। गर्भालय एवं आगे के दरवाजों को सम सूत्र में रखना शुभ एवं फलदायक
है। किंचित भी विषम सीध में न रखें। 3. दरवाजे के किवाड़ यदि अन्दर के भाग में ऊपर की तरफ झुके हुए हों __तो यह मन्दिर के लिए धन नाश का निमित्त बन सकता है। 4. दरवाजे के किवाड़ यदि बाहर के भाग में ऊपर की ओर झुके हुए हों तो
समाज में कलह एवं रोग का कारण बनता है। 5. दरवाजा खोलते या बन्द करते समय आवाज निकलना अशुभ एवं भय
कारक है।