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जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...131 खिड़की
सामान्यतया जैन मन्दिरों में सूर्य किरणों का सीधा प्रवेश दोषकारक माना गया है किन्तु वर्तमान शैली के मंदिरों में पर्याप्त वायु प्रवाह एवं प्रकाश के लिए खिड़की बनाना अपरिहार्य हो गया है उपरान्त ऐसी स्थिति में गर्भगृह में खिड़की नहीं बनाना चाहिए।
खिड़कियाँ बनाने के कुछ नियम इस प्रकार हैं1. खिड़कियाँ सम संख्या 2, 4, 6, 8 में बनवायें। 2. खिड़कियाँ भीतर की ओर खुलने वाली हो। 3. खिड़की दो पल्ले वाली ही बनवायें। 4. यदि खिड़कियाँ बनाना अपरिहार्य हो तो उन्हें पूर्व या उत्तर दिशा में
बनायें। 5. जिन मन्दिरों में सूर्य किरणों का प्रवेश उपयुक्त न हो उनमें खिड़की के
ऊपर इस प्रकार का छज्जा लगाये कि सूर्य की किरणे सीधी प्रवेश न कर
सकें। 6. गर्भगृह के पीछे परिक्रमा में खिड़की या झरोखा न बनायें। ऐसा करने पर
वहाँ पूजा, प्रक्षाल आदि धीरे-धीरे बन्द हो जाते हैं फिर उस स्थान पर
राक्षस क्रीड़ा करते हैं।52 जाली
___ मन्दिर में प्रकाश संचरण एवं वायु प्रवाह के लिए जाली की रचना भी की जाती है। द्वार की ऊँचाई के तीन भागों में दो भाग की जाली बनाते हैं। द्वार, जाली एवं गवाक्ष तीनों एक सीध में बनाये जाते हैं। गवाक्ष
गवाक्ष की रचना मंडोवर पर सजावट के लिए भी की जाती है। इसमें अनेक देव-देवियों के रूप बनाते हैं। इस संरचना से मन्दिर शोभा में अभिवृद्धि होती है।