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138... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
बलाणक
देवालय के प्रवेश द्वार के ऊपर जो मण्डप बनाया जाता है उसे बलाणक कहते हैं। इसे मुख मण्डप भी कहा जाता है। यह बलाणक (मण्डप) राजमहल, गृह, नगर, जलाशय आदि के मुख्य द्वार पर बनाना चाहिए। 55
प्रासाद मंडन में बलाणक के पाँच प्रकार बतलाये गये हैं
1. जगती के आगे की चौकी पर जो बलाणक बनाया जाता है उसे वामन बलाक कहते हैं।
2. राजद्वार के ऊपर पाँच या सात भूमि वाला बलाणक उत्तुंग नाम से कहा जाता है।
3. जलाशय द्वार के बलाणक को पुष्कर कहते हैं।
4. गृहद्वार के आगे एक, दो या तीन भूमि वाला बलाणक हर्म्यशाल (विशाल भवन, महल) कहलाता है।
5. किले के द्वार के ऊपर का मण्डप गोपुर कहलाता है। 56
इस प्रकार बलाणक जिनमन्दिर की प्रमुख संरचना है।
प्रतोली
मन्दिर के प्रवेश द्वार के अग्रभाग के स्थान पर दो अथवा चार स्तम्भ से युक्त तोरण आकृति का निर्माण किया जाता है उसे प्रतोली कहते हैं। यह रचना अत्यन्त कलात्मक रूप से जगती के अग्रभाग में बनाई जाती है। यह संरचना पाँच प्रकार की होती है
1. दो स्तम्भ वाली प्रतोली को उत्तंग कहते हैं।
2. जोड़ रूप दो स्तम्भ वाली प्रतोली मालाधर कही जाती है।
3. चार स्तम्भ की चौकी युक्त प्रतोली विचित्र कही जाती है।
4. विचित्र प्रतोली के दोनों ओर कक्षासन वाली प्रतोली चित्र रूप
कहलाती है।
5. चौकी युक्त जुड़वा स्तम्भ वाली प्रतोली को मकरध्वज कहते हैं। प्रतोली को समझने हेतु निम्न चित्र द्रष्टव्य है