________________
जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि... 135
का, चक्रवर्ती- नरेशों के प्रासाद में पाँच शाखा का तथा सामान्य राजाओं के प्रासाद में तीन शाखा का द्वार बनाना चाहिए। जिन मन्दिर में सात या नौ शाखा वाला द्वार बनवाना चाहिए।
प्रासाद मंडन के अनुसार जिनमन्दिर के भद्र आदि तीन, पाँच, सात या नौ अंग होते हैं। जितने अंग का प्रासाद हो उतनी ही शाखाएँ बनानी चाहिए। अंग से कम शाखा न बनायें परन्तु अधिक बनाना सुखद है। 54
शाखाओं के आधार पर द्वारों के नाम एवं गुण इस प्रकार हैंशाखा संख्या
आय
नौ
ध्वज आय
ध्वांक्ष आय
गज आय
खर आय
वृषभ आय
श्वान आय
सिंह आय
धूम आय
आठ
सांत
छह
पाँच
चार
तीन
दो
एक
सप्तशाखा द्वार का चित्र
सिंह शाखा
हस्तिनी
सप्त शाखा विस्तार भाग 8
खल्व शाखा रूप शाखिका
नाम
पद्मिनी
मुकुली
हस्तिनी
मालिनी
नन्दिनी
गांधारी
रूप शाखिका रूप स्तम्भ • गधवं शाखा
सुभगा
सुप्रभा
स्मरकीर्ति
ग्रास
उदुम्बर
मंदारक
गुण
उत्तम
ज्येष्ठ
उत्तम
ज्येष्ठ
उत्तम
मध्यम
मध्यम
कनिष्ठ
कनिष्ठ
ग्रास
सप्तशाखा द्वार एवं उदुम्बर की रचना