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जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...87 है। इस भूमि पर मन्दिर बनवाने से धन, सुख एवं उत्साह में वृद्धि होती है।
• ध्वजा आकार की भूमि पर किया गया मन्दिर निर्माण उन्नतिकारक है। • दृढ़ भूमि पर निर्मित मन्दिर धनदायक है। . सम भूमि पर निर्मित मन्दिर सौभाग्यदायक है। • उच्च भूमि पर जिनालय बंधवाने से यश सम्पन्न पुत्रों की प्राप्ति होती है। . कुशयुक्त भूमि तेजस्वी पुत्र प्रदान करती है। . दुर्वायुक्त भूमि पर मन्दिर बनवाने से वीर पुत्र की प्राप्ति होती है। • फल युक्त भूमि धन एवं पुत्र प्राप्ति में निमित्त बनती है। • श्वेतवर्णी भूमि सर्वोन्नति, पारिवारिक सुखसमृद्धि एवं संतति दायक होती है।
• पीतवर्णी भूमि पर मन्दिर बंधवाने से राजकीय लाभ एवं यश वर्धन होता है।
• सुखद स्पर्शी भूमि पर मन्दिर बनवाने से मन की शांति, विद्या और वैभव की सहज प्राप्ति होती है।
• सुगंध युक्त भूमि धन-धान्य और यशदायक होती है।' अशुभ भूमि के लक्षण
शिल्पज्ञों के अनुसार जो भूमि नदी के कटाव में हो, पर्वत के अग्रभाग से मिली हुई हो, बड़े पत्थरों से युक्त हो, तेजहीन हो, सपा की आकृति में हो, मध्य में विकट रूप हो, दीपक एवं सर्प की वामियों से युक्त हो, दीर्घ वृक्षों से युक्त हो, चौराहे की भूमि हो, जहाँ भूत-प्रेत निवास करते हो, श्मशान के निकटस्थ हो, युद्ध स्थली हो, मरुस्थली हो ऐसी भूमियाँ मन्दिर निर्माण के लिए अशुभ मानी गई हैं। अशुभ लक्षणवाली भूमियों के फल
ऊपर वर्णित एवं अन्य अशुभ भूमियों पर मन्दिर का निर्माण करवाने से वास्तुसार प्रकरण आदि शिल्प ग्रन्थों के अनुसार निम्न परिणाम हासिल होते हैं
1. कटी-फटी भूमि, हड्डी आदि शल्य युक्त भूमि, दीमक युक्त भूमि एवं . उबड़-खाबड़ भूमि पर मन्दिर निर्माण करने से मन्दिर निर्माता की आयु
एवं धन दोनों का हरण होता है। 2. दीमक वाली भूमि व्याधि कारक एवं रोगवर्धक होती है। 3. खारी भूमि धन का नाश करती है। 4. शल्य कंटक भूमि दुखकारक बनती है। 5. युद्ध एवं हिंसक भूमि पर किया गया मन्दिर निर्माण शोक कारक, __मृत्युकारक और दुःखकारक होता है। 6. श्मशान, कब्रिस्तान एवं पशु बलि के जगहों पर मन्दिर निर्माण करने से