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जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...109
पूर्व
शुभ
8. ध्यान प्रिय साधु एवं श्रावक वहाँ पर स्थिर चित्त होकर ध्यान कर सकें,
इस हेतु समुचित प्रकाश एवं वायु की व्यवस्था रखें। 9. मन्दिर के मुख्य द्वार के नीचे तलघर नहीं बनाना चाहिए। विभिन्न दिशाओं में तलघर बनाने के शुभाशुभ फल दिशा
फल
शुभ आग्नेय
समाज में मन मुटाव एवं विवाद दक्षिण
समाज एवं मंदिर निर्माता पर आपत्ति नैऋत्य
सामाजिक सुख-शांति का नाश पश्चिम
अशुभ वायव्य
अशुभ, निरंतर परेशानियाँ उत्तर ईशान
उत्तम, शुभ, प्रशस्त, श्री वृद्धि जहाँ तक हो तलघर बनाने से बचना चाहिए। अपरिहार्य होने पर भी सही दिशा में ही तलघर बनायें। पुष्प वाटिका ___मन्दिर में पूजा के लिए पुष्पों की आवश्यकता होती है उसके लिए उपयोगी पुष्पों के पौधे एवं वृक्ष लगाने चाहिए। मन्दिर के परिसर में नानाविध पुष्पों की महक से वहाँ का समूचा वातावरण प्रफुल्लित रहता है और अन्य भी कई फायदे होते हैं।
यह पुष्प वाटिका जिनालय के पूर्व, उत्तर या ईशान भाग में लगानी चाहिए, इससे पुत्र एवं धन-धान्य आदि का लाभ होता है। . आग्नेय, नैऋत्य एवं दक्षिण भाग में पुष्प वाटिका लगाने से मानसिक संताप और कष्ट होता है। मन्दिर प्रांगण में फलदार वृक्ष न लगायें, किन्तु दक्षिण एवं नैऋत्य में नारियल लगा सकते हैं। मन्दिर निर्माण के लिए फलदार वृक्षों की लकड़ी का भी उपयोग नहीं करना चाहिए। नीम, इमली इत्यादि वृक्ष असुर प्रिय होने से इन्हें भी मन्दिर के प्रांगण में नहीं लगाना चाहिए। इनसे जन आवागमन बाधित होता है।
आचार्य देवनन्दीजी ने विभिन्न दिशाओं में वृक्षारोपण का निम्न फल बतलाया है