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114... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
दीवार की ऊँचाई एवं मोटाई दक्षिण दिशा में उत्तरी दीवार से अधिक होनी चाहिए। इसी भाँति पश्चिमी दीवार की मोटाई एवं ऊँचाई पूर्वी दीवार से मोटी होनी चाहिए। कुल मिलाकर नैऋत्य भाग में परकोटे की दीवार सबसे ऊँची रखें तथा ईशान में सबसे नीची रखें। ___ यदि परकोटा इस तरह बनता है कि जिससे भगवान की दृष्टि बाधित होती हो तो दृष्टिवेध का परिहार करें। यदि उत्तर अथवा पूर्व में महाद्वार नहीं हो और भगवान की दृष्टि उत्तर या पूर्व में हो तो लघु द्वार बनाकर वेध परिहार करें। परकोटे की दीवार विभिन्न दिशाओं में अधिक ऊँची होने का फल उत्तर
मन्दिर का धन व्यय ईशान
मन्दिर कार्यों में निरन्तर विघ्न-बाधाएँ
ऐश्वर्य हानि, धन हानि आग्नेय
यश प्राप्ति दक्षिण श्रेष्ठ, शुभ
समाज में धन, यश लाभ, अभ्युदय पश्चिम
शुभ वायव्य ___ आरोग्य
परकोटा बनाने के लिये पत्थर, ईंट आदि का प्रयोग करें। परकोटे की दीवार पर प्लास्टर करके उस पर चूने या पेंट से पुताई करें। परकोटे पर काला रंग न लगायें, अत्यंत लाल एवं कत्थई रंग भी न लगाएं। जो भी रंग लगायें वह उत्साह वर्धक हो, निराशा वर्धक न हो।
परकोटा बनाते समय ध्यान रखें कि दक्षिण में उत्तर से कम जगह खाली छोड़ें। दक्षिणी भाग में कम से कम जगह खाली छोड़ें। परिक्रमा के लिए लगभग पाँच फुट जगह छोड़ सकते हैं।
परकोटा बनाने से न केवल मन्दिर की सुरक्षा होती है अपित उसका स्वरूप भी गरिमामयी हो जाता है। इससे अपराधी तत्त्वों, पशुओं एवं प्रेतादि बाधाओं से संरक्षण हो जाता है। अतएव मन्दिर निर्माण करते समय परकोटा अवश्य बनवायें।
नैऋत्य