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102... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
जल का बहाव
मन्दिर के बाह्य भाग में जल के निर्गमन हेतु ढलान बनाना आवश्यक है, जिससे वर्षा आदि का पानी निराबाध रूप से बह सके।
वास्तुसार प्रकरण के अनुसार जल प्रवाह के लिए पूर्व, ईशान या उत्तर दिशा में ढलान रखना चाहिए। इन तीन दिशाओं को ढलान हेतु शुभ माना गया है।35
पश्चिम, वायव्य एवं नैऋत्य दिशा में जल बहाव रखने से संघ का निष्प्रयोजन व्यय होता है और अर्थ संकट की स्थिति पैदा होती है।
दक्षिण एवं आग्नेय दिशा में जल बहाव रखने पर आकस्मिक धन हानि और मृत्युकारक कष्ट आते हैं। पानी निकालने की मोरी
मंदिर में पानी निकालने के लिए मोरी या नाली बनाई जाती है उसे वास्तुशास्त्र के नियमानुसार पूर्व, उत्तर अथवा ईशान की ओर निकालनी चाहिए। वास्तुक ग्रन्थों में सभी दिशाओं के हानि-लाभ की चर्चा इस प्रकार की गई हैमोरी की दिशा
परिणाम पूर्व दिशा में
वृद्धिकारक उत्तर दिशा में
धन लाभ दक्षिण दिशा में
रोगकारक पश्चिम दिशा में
धन हानि ईशान कोण में आग्नेय कोण में
अशुभ, हानिप्रद नैऋत्य कोण में
अशुभ, हानिप्रद वायव्य कोण में
अशुभ, हानिप्रद मोरी की शुभता-अशुभता का प्रभाव मन्दिर निर्माण में भाग लेने वाले परिवारों पर पड़ता है।36 अभिषेक जल निर्गम द्वार ____ अभिषेक, जिन पूजा का प्रमुख अंग है। दूध, दही, घृत, जल आदि पंचगव्य से जिनबिम्ब का अभिषेक किया जाता है। अभिषेक जल के निकलने की नाली या नलिका का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रखना चाहिए।37
शुभ