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मन्दिर निर्माण का मुहूर्त विचार ... 73
विश्वकर्मा प्रकाश में कहा गया है कि जिस दिशा में राहु का मुख हो उस दिशा में स्तम्भ स्थापित करने पर वंश नाश, द्वार स्थापित करने पर अग्नि भय, यात्रा करने पर कार्य हानि और मन्दिर निर्माण का कार्य आरंभ करने पर कुल नाश होता है।
लग्न शुद्धि
लग्न राशि सम्बन्धी विचार- मन्दिर निर्माणकर्ता की जन्म राशि से 1-6-10 वाँ और 11 वाँ लग्न तथा निर्माणकर्ता के जन्म लग्न से आठवें लग्न को छोड़कर शेष लग्नों में कार्यारम्भ करें।
मन्दिरकर्ता के लग्न से 3,6,11 वें स्थान में पापग्रह हों तथा केन्द्र (1,4,7,10) और त्रिकोण (5,8) में न हों तब मन्दिर का कार्य शुरू करें।
ग्रह - लग्न सम्बन्धी मन्दिर का आयु विचार- वास्तुसार प्रकरण के अनुसार शुक्र लग्न में, बुध दसवें स्थान में, सूर्य ग्यारहवें स्थान में और बृहस्पति केन्द्र (1-4-7-10 स्थान) में हो और ऐसे लग्न में यदि नूतन वास्तु का खनन किया जाए तो उसकी आयु सौ वर्ष होती है ।
दसवें और चौथे स्थान में बृहस्पति और चन्द्रमा हो तथा ग्यारहवें स्थान में शनि और मंगल हो तो ऐसे लग्न में वास्तु का निर्माण आरंभ करने पर लक्ष्मी अस्सी (80) वर्ष स्थिर रहती है। बृहस्पति प्रथम लग्न स्थान में, शनि तीसरे, शुक्र चौथे, रवि छठवें और बुध सातवें स्थान में हो, ऐसे लग्न में खनन करने पर वास्तु में सौ वर्ष तक लक्ष्मी स्थिर रहती है।
शुक्र लग्न में, सूर्य तीसरे में, मंगल छठवें में और गुरु पाँचवे स्थान में हो, ऐसे लग्न में मन्दिर का निर्माण आरंभ किया जाये तो दो सौ वर्ष तक यह वास्तु समृद्धियों से पूर्ण रहता है।
कर्क राशि का चंद्रमा लग्न में हो और बृहस्पति केन्द्र ( 1-4-7-10 स्थान ) में बलवान होकर रहा हो, उस समय वास्तु का आरंभ करें तो उसकी निरंतर प्रगति होती है। गृहारंभ के समय लग्न से आठवें स्थान में क्रूर ग्रह हो तो बहुत अशुभ कारक है और सौम्य ग्रह रहा हो तो मध्यम है।
यदि कोई भी एक ग्रह नीच स्थान का, शत्रु स्थान का अथवा शत्रु के नवांश का होकर सातवें स्थान में अथवा बारहवें स्थान में रहा हो तथा गृहपति के वर्ण का स्वामी निर्बल हो, ऐसे समय में प्रारंभ किया हुआ कार्य दूसरे