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68... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
देखकर 50 जिनबिम्ब तैयार करवाने पर सामान्यतः जितने आनन्द की संभावना हो उतना आनन्द श्रावक के हृदय में उमड़ आये तो परमार्थ से उस श्रावक ने 50 जिनबिम्बों का निर्माण करवाया, ऐसा जानना चाहिए । इस तरह प्रतिमा का शान्त, सुरम्य, पवित्र, निर्दोष मुख मंडल देखकर प्रीति उत्पन्न होती है। सुप्रतिष्ठा के परिणाम
विधिमार्गप्रपा आदि प्रतिष्ठाकल्पों में सुप्रतिष्ठा का फल बताते हुए कहा गया है
राया बलेण वड्डइ, जसेण धवलेइ सयल दिसिभाए । पुण्णं वड्डइ विउलं, सुपईट्ठा जस्स देसंमि ।।
जिस देश में अरिहंत परमात्मा के जिन बिम्ब की प्रतिष्ठा (स्थापना) अच्छी तरह से होती है उस देश का राजा सैन्य शक्ति से वृद्धि पाता है, उसका यश समस्त दिशाओं में फैल जाता है और वह विपुल पुण्य से बढ़ता है। उवहणइ रोगमारी, दुब्मिक्खं हणइ कुणइ सुहभावे
भावेण कीरमाणा, सुपइट्ठा सयल लोयस्स । ।
शुभ भाव से की गई जिन प्रतिमा की प्रतिष्ठा सकल लोक में होने वाली हैजा, प्लेग जैसी महामारी का नाश करती है, दुर्भिक्ष को दूर करती है और सुख भाव को उपलब्ध करती है।
जिणबिंब पट्ठ जे, करिंति तह कारविंति भत्तीए । अणुमन्नइ पइदियहं सव्वे सुहभायणं हुंति । ।
जो भक्तिपूर्ण हृदय से जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा करते हैं, अन्यों के द्वारा करवाते हैं और प्रतिदिन प्रतिष्ठा कर्ता की अनुमोदना करते हैं वे सभी सुखी होते हैं। दव्वं तमेव मन्नइ, जिणबिंब पट्टणाइ कज्जेसु जं लग्गइ तं सहलं, दुग्गइजणणं हवइ सेसं । ।
जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा आदि कार्यों में जिस द्रव्य का उपयोग होता है वही धन सफल माना गया है शेष दुर्गति का जनक है।
एवं नाऊण सया, जिणवरबिंबस्स कुणह सुपइटुं । पावेह जेण जरमरण, वज्जियं सासयं ठाणं । ।
इस प्रकार जिनेश्वर बिम्ब की महिमा को जानकर सदा सुप्रतिष्ठा करो, जिस सुप्रतिष्ठा के द्वारा जन्म-मरण से मुक्त होकर शाश्वत स्थान को प्राप्त कर सको। 1