________________
54... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
प्रश्न हो सकता है कि अच्छा कार्य करना हो तो कर लेना चाहिए, उसमें मंगल आदि की क्या आवश्यकता ?
समाधान- एक बहु प्रसिद्ध लोकोक्ति है कि 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि' - श्रेष्ठ कार्यों में अनेक विघ्न आते हैं। परीक्षा हमेशा सत्यवादी, दृढ़ मनोबली, साहसी, पराक्रमी लोगों की ही होती है ताकि वे स्वर्ण की भाँति विघ्न रूपी अग्नि में तपकर अधिक खरे और निर्मल हो जाएँ ।
सामान्य स्थिति में भी हम देखते हैं कि किसी श्रेष्ठ या मांगलिक कार्य में हजारों रोड़े एवं विपदाएँ आती हैं। परन्तु बेईमानी, झूठ-कपट, विश्वासघात, चोरी जैसे कार्यों में कभी कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती। कंजूस को धन संग्रह में अन्तराय नहीं आता किन्तु दान आदि क्रिया करनी हो तो बहुत विघ्न आ जाते हैं। खाने में विघ्न नहीं आता परन्तु तपस्या करनी हो तो कोई न कोई परेशानी जरूर आयेगी। विघ्न की उपस्थिति में मनोबल कमजोर हो सकता है, जबकि मंगल रूप क्रिया करने से विघ्नों का निवारण होता है तथा एक विधेयात्मक शक्ति की प्राप्ति होती है। संभावित विघ्नों को निरस्त करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है और मानसिक रूप से भी एक विशेष दृढ़ता आती है, बशर्ते श्रद्धा मजबूत हो।
यहाँ पुनः प्रश्न होता है कि मंगल क्रियाओं से विघ्नों का नाश कैसे संभव है?
समाधान- विघ्न आने का मुख्य कारण व्यक्ति के स्वयं के अशुभ कर्म. होते हैं। उन दुष्कर्मों के उदय से ही आपत्तियाँ आती हैं। अशुभ कर्मबन्ध का मुख्य कारण है अशुभ भाव। ऐसी स्थिति में शुभ भावों के द्वारा, शुभ अध्यवसायों का निर्माण कर सहज रूप से अशुभ भावों का नाश किया जा सकता है। उत्कृष्ट मंगल करने वाले अरिहंत देव और गुरु की आराधना करने से हमारे चित्त में उत्तम भावनाओं का निर्माण होता है, जो अशुभ के निवारण में कार्यकारी सिद्ध होती हैं।
इसके उपरान्त भी एक समस्या यह उत्पन्न होती है कि कई बार मंगल रूप वंदन आदि क्रियाएँ करने पर भी विघ्न उपस्थित होते रहते हैं तो उस स्थिति में मंगल से अशुभ कर्मों का नाश कैसे संभव है?
समाधान- इसका जवाब यह है कि कई बार बंधे हुए अशुभ कर्मों के