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वनस्पतिकाय की हिंसा के कारण
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भावार्थ - अग्निकाय जीवों की हिंसा, भोजनादि बनाने, दूसरों से बनवाने, दीपक आदि जलाने और प्रकाश करने आदि कार्यों में की जाती है।
विवेचन - पचन- पचावन में केवल भोजन ही नहीं, वे सभी चीजें आ गईं, जो पकाई जाती हैं। जैसे-ईंट, चूना, बर्तन, धातु, औषधि आदि । इसी प्रकार आदि शब्द से अन्य अग्निकाय के आरम्भ के कारणों को भी जान लेना चाहिए।
वायुकाय की विराधना के कारण
सुप्प-वियण-तालयंट- पेहुण-मुह-करयल - सागपत्त-वत्थमाईएहिं अणिलं हिंसंति । शब्दार्थ- सुप्प - सूप-धान्यादि फटक कर साफ करने का साधन, वियण- पंखे से, तालयंट के पंखे से, पेहुण- मयूरादि के पंख से, मुह मुख से, करयल हथेलियों से, सागपत्त सागोन के पान से, वत्थमाइएहिं वस्त्र आदि से, अणिलं वायुकाय के जीवों की हिंसंति - हिंसा की जाती है।
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भावार्थ- सूप, बाँस आदि के विंजने (पंखे) से, मयूरादि के पंखों से बने हुए पंखे से, मुँह से, हथेलियों से, सागोन के पान और वस्त्रादि साधनों से वायुकाय के जीवों की विराधना की जाती है ।
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विवेचन - इस सूत्र में वायुकाय के जीवों की हिंसा के साधन बतलाये हैं।
मुँह से वायुकाय की हिंसा एक तो फूँक लगाने से होती है, दूसरी वस्त्रादि से यतना नहीं करके खुले मुंह से बोलने और छींक जम्हाई आदि लेने से होती है।
करतल से - ताली बजा कर या झाँझ, डफली, तबला आदि हाथों से बजाकर वायुकाय की विराधना की जाती है ।
सागपत्र सागोन नामक वृक्ष के पान, हाथी के कान जैसे बड़े होते हैं। उनसे हवा करके विराधना की जाती है ।
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वस्त्र से झटक, फटक और हिलाकर तथा उड़ाकर हिंसा की जाती है। 'विजन' शब्द में उन सभी प्रकार के पंखों का समावेश किया जा सकता हैं, जो हवा के लिए बिजली आदि से चलते हैं। वनस्पतिकाय की हिंसा के कारण
अंगार - परियार-भक्ख-भोयण-सयणासण- फलक- मूसल - उखल-तत-विततातोज्ज-वहण - वाहण - मंडव - विविह-भवण- तोरण- विडंग - देवकुल- जालयद्धचंदणिज्जूहग- चंदसालिय-वेतिय- णिस्सेणि- दोणि- चंगेरी - खील- मंडव - सभा - पवावसहगंध-मल्लाणुलेवणं - अंबर - जुयणंगल- मइय-कुलिय- संदण सीयारह-सगड-जाणाजोग्ग- अट्टालग - चरिय-दार - गोउर-फलिहा- जंत-सूलिय-लउड-मुसंठि - सयग्धी- बहुप
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