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पर-स्त्री में लुब्ध जीवों की दुर्दशा
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९. स्वस्तिक १०. पताका ११. यव १२. मच्छ १३. कच्छप १४. उत्तम रथ १५. मकरध्वज (कामदेव) १६. अंकरत्न १७. थाल १८. अंकुश १९. अष्टापद (द्युत फलक) २०. सुप्रतिष्ठक (स्थापनक) २१. अमर (देव) या मयूर २२. अभिषेक युक्त लक्ष्मी २३. तोरण २४. पृथ्वी २५. समुद्र २६. उत्तम भवन २७. श्रेष्ठ पर्वत २८. उत्तम दर्पण २९. लीला करता हुआ हाथी ३०. वृषभ ३१. सिंह और ३२. चामर। .
. उनकी चाल हंस के समान और बोली कोकिला के समान मधुर स्वर वाली होती है। वे कमनीय सर्वप्रिय एवं सर्वानुमत होती हैं। उनके अंग, उपांग, चमड़ी, केश आदि हीन, अधिक संकुचित या विकृत नहीं होते। वे दुर्वर्ण व्याधि, दुर्भाग्य एवं शोक से मुक्त रहती हैं। वे पुरुष से कुछ ही कम ऊँची होती है। वे श्रृंगार रस के भवन के समान सजी हुई और सुन्दर वेश वाली होती है। उनके स्तन; जंघा, मुख, हाथ, पाँव और नयन अति सुन्दर होते हैं। वे लावण्य रूप यौवन और गुणों से भरपूर होती है। नन्दन वन में विचरने वाली अप्सराओं के समान वे देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्यों की अप्सराएँ हैं। उनका रूप आश्चर्यजनक तथा दर्शनीय होता है। वे अपनी तीन पल्योपम की उत्कृष्ट आयु भोगकर और कामभोगों से अतृप्त रह कर ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती है।
. , पर-स्त्री में लुब्ध जीवों की दुर्दशा मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहिं हणंति एक्कमेक्कं, विसयविसउदीरएसु अवरे परदारेहिं हम्मति विसुणिया धणणासं सयणविप्पणासं य पाउणंति, परस्स दाराओ जे अविरया मेहुणसण्णा संपगिद्धा य मोहभरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं, मणुयगणा वाणरा य पक्खी य विरुझंति, मित्ताणि खिप्पं हवंति सत्तू, समए धम्मे गणे य भिदंति पारदारी, धम्मगुणरया य बंभयारी खणेण उल्लोट्टए चरित्ताओ, जसमंतो सुव्वया य पावेंति अयसकित्तिं रोगत्ता वाहिया पवउँति रोगवाही, दुवे य लोया दुआराहगा हवंति इहलोए चेव परलोए परस्स दाराओ जे अविरया, तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया य हया य बद्धरुद्धा य एवं जाव गच्छंति विउलमोहाभिभूयसण्णा।।
-शब्दार्थ - मेहुणसण्णासंपगिद्धा - मैथुनेच्छा में गृद्ध बने हुए, मोहभरिया - मोह से भरे हुए, सत्थेहिं हणंति - शस्त्रों से मार डालते हैं, एक्कमेक्कं - एक-दूसरे को, विसयविसउदीरएसु - विषयरूपी विष की उदीरणा करने वाली-बढ़ाने वाली, अवरे - अन्य, परदारेहिं - पराई स्त्रियों में, हम्मंतिमारते हैं, विसुणिया - पता लगने पर, धणणासं - धन का नाश, सयणविप्पणासं - स्वजनों के नाश को, पाउणंति - प्राप्त होते, परस्सदाराओ - पराई स्त्रियों से, अविरया - अविरत हैं, मेहुणसण्णा - मैथुनसंज्ञा स्त्री से संभोग की इच्छा में, संपगिद्धा - गृद्धा-अत्यन्त आसक्त हैं, मोहभरिया - मोह से भरे हुए, अस्सा - अश्व, हत्थी - हाथी, गवा - बैल, महिस - भैंसे, मिगा - मृग, मारेंति - मारते हैं,
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