________________ 291 **************************************************************** हेय-ज्ञेय और उपादेय के तेंतीस बोल तीन विराधना - ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना नहीं करके विराधना करना। 4. चार कषाय- संसार एवं पाप को बढ़ाने वाले-ऐसे क्रोध, मान, माया और लोभ का सेवन करना। चार ध्यान-आर्त और रौद्र - इन दो दुानों में रमण करना हेय है और धर्म तथा शुक्ल-ये दो उत्तम ध्यान उपादेय हैं। चार संख्या - 1. आहार 2. भय 3. मैथुन और 4. परिग्रह की इच्छा - आसक्ति। यह त्यागने योग्य हैं। 5. पांच क्रिया - 1. कायिकी 2. आधिकरणिकी 3. प्राद्वेषिकी 4. पारितापनिकी और 5. ' प्राणातिपातिकी। अथवा 1. आरम्भिकी 2. पारिग्रहिकी 3. मायाप्रत्यया 4. अप्रत्याख्यान-प्रत्यया और 5. मिथ्यादर्शन प्रत्यया। ये सभी क्रियाएँ कर्मबन्ध की कारण हैं, अतएव त्यागनीय हैं। पांच समिति - 1. ईर्या समिति 2. भाषा समिति 3. एषणा समिति 4. आदानभण्डमात्र निक्षेपणा समिति और 5. उच्चार-प्रस्रवण-खेल-जल्ल-संघाण परिस्थापनिका समिति। ये पांचों समितियाँ आवश्यक प्रवृत्ति के लिए उपयोगी हैं, उपादेय हैं। पांच इन्द्रियाँ - 1. श्रोत 2. चक्षु 3. घ्राण 4. रसना और 5. स्पर्श। इन्हें अपने-अपने विषयों में जाने से रोक कर संयम में रखना चाहिए। * पांच महाव्रत - प्राणातिपात-विरमणादि पांचों महाव्रतों का पालन करना। 6. छह जीवनिकाय - पृथ्वीकायादि छह प्रकार के जीवों की हिंसा का त्याग करना। छह लेश्या - 1. कृष्ण 2. नील 3. कापोत 4. तेजो 5. पद्म और 6. शुक्ल। इनमें से प्रथम की तीन लेश्याएं अप्रशस्त (अशुभ) हैं और बाद की तीन लेश्याएं प्रशस्त (शुभ) हैं। 7. सात भय - 1. इहलोक भय 2. परलोक भय 3. आदान भय. 4. अकस्मात् भय 5. आजीविका भय 6. अपयशं भय और 7. मृत्यु भय। ये सभी भय त्याज्य हैं। .. 8. आठ मद - 1. जाति मद 2. कुल मद 3. बल मद 4. रूप मद 5. तप मद 6. लाभ मद.७. श्रुत मद और 8 ऐश्वर्य मद। सभी मद त्याज्य हैं। 9. ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियाँ - 1. विविक्त शयनासन सेवन 2. स्त्रीकथा विवर्जन 3. स्त्री युक्त आसन परिहार 4. स्त्रियों का रूप दर्शन त्याग 5. स्त्रियों के श्रृंगार, करुण तथा हास्यादि शब्द श्रवण त्याग 6. पूर्वभोग स्मृति त्याग 7. प्रणीत आहार त्याग 8. अति आहार वर्जन और 9. विभूषा त्याग।। श्रमणधर्म दस - 1. .क्षांति 2. मुक्ति (निर्लोभता) 3. आर्जव (ऋजुता) 4. मार्दव (नम्रता) 5. लघुता (अल्पोपधि) 6. सत्य 7. संयम 8. तप 9. त्याग और 10. ब्रह्मचर्य। श्रावक की ग्यारह प्रतिमा - 1. दर्शन प्रतिमा 2. व्रत 3. सामायिक 4. पौषध 5. कायोत्सर्ग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org