________________ 336 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०५ **************************************************************** भावार्थ - प्रश्नव्याकरण में एक श्रुतस्कन्ध और दस अध्ययन हैं। इसका एक समान दस दिनों में एकान्तर आयंबिल करते हुए अथवा अन्त-प्रान्त आहार करते हुए उपदेश करना चाहिए। विशेष वर्णन आचारांग के समान जानना चाहिए। यह प्रश्नव्याकरण सूत्र पाप और धर्म का विवेचन करने वाला है। आत्मा से परमात्मा बनाने वाली विशिष्ट एवं सर्वोत्तम साधना का उपदेश करने वाला परमोपकारी सूत्र है। इसका रुचि प्रतीति एवं श्रद्धायुक्त पठन-मनन करके स्पर्शन करने वाले भव्य जीव, निश्चय ही मुक्ति लाभ करेंगे। . जयइ सव्वण्णु सासणं। परमसंबोहिए सुहिणो भवंति जीवा, सुहिणो भवंति जीवा। जिनेश्वर भगवंत की जय हो। निर्ग्रन्थ गुरुवर की जय हो। निर्ग्रन्थ धर्म को जय हो॥ // प्रश्नव्याकरण सूत्र समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org