________________ हेय-ज्ञेय और उपादेय के तेतीस बोल 297 **************************************************************** व्युत्सर्ग 26. अप्रमाद 27. समयसाधन 28. ध्यान-संवर योग 29. मारणंतिय कष्ट सहन 30. संयोग ज्ञान 31. प्रायश्चित्त और 32. अंतिम आराधना। (समवायांग 32) __सुरेन्द्र बत्तीस - दस भवनपति के 20 इन्द्र, ज्योतिषी के 2 और वैमानिक के 10 इन्द्र, यों 32 इन्द्र हुए। आशातना तेतीस - 1. रत्नाधिक के आगे चलना। 2. बराबर चलना। 3. पीछे चलते हुए सट कर चलना। 4-6. इसी प्रकार आगे-पीछे और बराबर खड़ा रहना। 7-9. इसी प्रकार बैठना। 10. रत्नाधिक के साथ शौच जावे और एक ही पात्र में पानी हो, तो पहले शौच करे। .. 11. बाहर से लौटने पर अथवा स्वाध्याय के लिए बाहर जाने पर गुरु से पहले ही ईर्यापथिकी करे। . 12. आगत व्यक्ति से गुरु को ही पहले बात करनी है, उससे शिष्य पहले बात करे। 13. रात्रि में गुरु पुकारे, तो जागता हुआ भी नहीं बोले। 14. आहारादि लाने के बाद आलोचना पहले अन्य साधुओं के पास करे और बाद में गुरु के पास करे। 15. आहारादि ला कर पहले अन्य साधुओं को दिखावे और रत्नाधिक को बाद में दिखावे। 16. आहारादि के लिए अन्य साधुओं को निमन्त्रित करने के बाद रत्नाधिक को निमन्त्रित करे। . 17. रत्नाधिक को पूछे बिना ही दूसरे साधुओं को उनकी इच्छानुसार आहार दे। 18. रत्नाधिक के साथ आहार करने पर अच्छी और मनोज्ञ वस्तु शीघ्रतापूर्वक और अधिक खावे। 19. रत्नाधिक के पुकारने पर सुना-अनसुना करे। 20. गुरु के पुकारने पर आसन पर बैठे हुए ही उत्तर दे। 21. गुरु के पुकारने पर प्रश्न पूछे कि 'क्या कहते हो।' 22. गुरु के तुच्छतापूर्वक 'तू''तुम' बोले। . 23. गुरु को कठोर वचनों से बोले और आवश्यकता से अधिक वचन बोले। 24. अपमान करने के लिए गुरु के वचन ही उन्हें सुनावें। 25. धर्म-कथा कहते समय गुरु को टोंके। 26. धर्म-कथा के बीच में भूल बतावे। 27. गुरु का धर्मोपदेश उपेक्षापूर्वक सुने। 28. गुरु का धर्मोपदेश चल रहा हो तब परिषद् भंग करने का प्रयत्न करे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org