Book Title: Prashna Vyakarana Sutra
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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________________ 320 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०५ **************************************************************** सूसरपरिवाइणि-वंस-तूणग-पव्वग-तंती-तल-ताल-तुडिय-णिग्योसगीय-वाइयाइं। णड-गट्टग-जल्ल-मल्लग-मुट्ठिग-वेलंबग-कहग-पवग-लासग-आइक्खग-लंखमंख-तुणइल्ल-तुंबवीणिय-तालायर-पकरणाणि य बहुणि महुरसरगीय-सुस्सराई कंचीमेहला-कलाव-पत्तरग-पहेरग-पायजालग-घंटिय-खिंखिणि-रयणोरुजालिय-छुद्दियणेउर-चलण-मालिय-कणग-णियल-जालभूसणसद्दाणि, लीलचंकम्ममाणाणूदीरियाई तरुणीजणहसिय-भणिय-कलरिभिय-मंजुलाई गुणवयणाणि व बहूणि महूरजणभासियाई अण्णेसु य एवमाइएसु सद्देसु मणुण्णभद्दएसु ण तेसु समणेण-सज्जियव्वं, ण रजियव्वं, ण गिझियव्वं ण मुज्झियव्वं ण विणिग्घायं आवजियव्यं, ण लुभियव्वं ण तुसियव्वं, ण हसियव्वं, ण सइंच मइं च तत्थ कुज्जा। शब्दार्थ - तस्स - उस, इमा - ये, पंच भावणाओ - पांच भावनाएं, चरिमस्स - अंतिम, वयस्सव्रत की, होति - हैं, परिग्गहवेरमण-परिरक्खणट्ठयाए - परिग्रह व्रत की रक्षा के लिए, पढमं - प्रथम, सोइंदिएणं - श्रोत्रेन्द्रिय से, सोच्चा - सुन कर, सद्दाई - शब्दों को, मणुण्णभद्दगाइं - मनोज्ञ और प्रिय, किं ते - कौन-से हैं, वरमुरय - श्रेष्ठ मुरज, मुइंग - मृदंग, पणव - पणव-छोटा ढोल, ददुर - दर्दुर, कच्छभि - कच्छपी, वीणा - वीणा, विपंची - विपंची, वल्लयि - वल्लकी, वद्धीसग - बद्धीसक, सुघोसणंदि - उत्तम शब्द वाला नन्दी नामक बाजा, सूसरपरिवाइणि - श्रेष्ठ स्वर वाली परिवादिनी, वंस - वंशी, तूणग - तूणक, पव्वग - पर्वक, तंती - तंती, तल - हाथ की ताली, ताल - ताल, तुडियणिग्योसगीय-वाइयाइं - इन बाजों के शब्दों को सुन कर, णड - नट, णट्टग - नर्तक, जल्ल - रस्सी बांध कर उस पर नाच करने वाले, मल्लग - मल्ल-पहलवान, वेलंबग- विदुषक, कहगकथक, पवग - प्लवक, लासग - रास गाने वाले, आइक्खग - आख्यायक, लंख - लंख, मंख - मंख. तणडल्ल- तणइल्ल. तंब - तम्ब, वीणिय- वीणिक, य- और, तालायर-तालाचर, पकरणाणिइनके द्वारा किये जाने वाले, बहुणि - अनेक प्रकार के, महुरसरगीय-सुस्सराई - मधुर स्वर वाले गीत आदि सुन कर, कंची - कांची, मेहला - मेखला-कन्दोरा, कलाव - कलापक-गले में पहनने का आभूषण, पत्तरग - प्रतारक-आभूषण विशेष, पहेरग - प्रहेरक, पायजालग - पैर में पहनने की पायल, घंटिय - घण्टिका, खिंखिणि - किंकिणी, रयणोरूजालिय - रत्नों का बना हुआ विशाल जालक, छुद्दिय - क्षुद्रिका, णेउर - नुपुर, चलणमालिय - चरणमालिका, कणगणियल - सोने के कड़े, जालएक आभूषण विशेष, भूसणसहाणि - इन सभी आभूषणों के शब्द सुन कर, लीलचंकम्माण - लीलापूर्वक गमन करने वाली युवतियों के, अणूदीरियाई - कहे हुए शब्द, तरुणीजणहसिय - तरुण स्त्रियों का हास्य, भणिय - शब्द, कलरिभिय - मधुरता पूर्वक उच्चारण किये गये शब्द, मंजुलाई - मंजुल शब्द, गुणवयणाणि - प्रशंसा के शब्द, महुरजणभासियाई - मधुर शब्दों को, एवमाइएसु - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
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