Book Title: Prashna Vyakarana Sutra
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 335
________________ 318 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०५ **************************************************************** 28. विहगे विव सव्वओ विप्पमुक्के - पक्षी के समान सभी से सर्वथा विमुक्त। जिस प्रकार पक्षियों के आकाश-विहार में कोई प्रतिबन्ध नहीं होता। वे स्वेच्छा से जहाँ चाहे चले जाते हैं, उसी प्रकार अप्रतिबद्ध विहारी अनगार भी क्षेत्र विशेष के प्रतिबन्ध से रहित होते हैं। वे अपनी मुनिमर्यादानुसार विचरते रहते हैं। स्वजनादि अथवा स्थान या क्षेत्रमोह के बन्धन से वे मुक्त होते हैं। अनुयायिओं का प्रेम भी उन्हें नहीं रोक सकता। जब तक जंघाबल साथ देता है, तब तक वे अपने कल्प के अनुसार बिना किसी प्रतिबन्ध के विहार करते रहते हैं। 29. कायपरिणलए जहा चेव उरए - सर्प के समान पर-गृह में रहने वाले। जिस प्रकार सर्प अपने रहने का घर (बिल) नहीं बनाता। वह दूसरे के बनाये हुए बिल में रहता है, उसी प्रकार गृहत्यागी अनगार भगवंत भी अपने लिए घर का निर्माण नहीं करते। गृहस्थों ने अपने लिए जो घर बनाए हैं, उसी में वे ठहरते हैं। सर्प तो बिल बनाने वाले की इच्छा के बिना, उसे दुःखी करकेजबरदस्ती कब्जा कर लेता है। किन्तु अनगार भगवंतों में यह विशेषता रही हुई है कि वे किसी पर बलजबरी नहीं करते। किसी का दिल नहीं दुखाते। वे प्रसन्नता पूर्वक दिये हुए प्रासुक स्थान का उपयोग करते हैं और इसी प्रकार निर्दोष आहारादि ग्रहण करते हैं। 30. अपडिबद्धे अणिलोव्व - वायु के समान बन्धन-रहित। जिस प्रकार वायु एक स्थान पर .. * नहीं ठहरता। उसका कोई नियत स्थान ही नहीं होता, उसी प्रकार निर्ग्रन्थ-श्रमण के भी कोई घर नहीं होता। वे एक स्थान पर नहीं रह कर ग्रामानुग्राम विचरते हैं। वे किसी क्षेत्र, संघ अथवा व्यक्ति विशेष से बंधे हुए नहीं होते। वायु, गरीब और अमीर सब को स्पर्श करता है, उसी प्रकार वे निष्पही संत, गरीब-अमीर का भेद रखे बिना सबको धर्मोपदेश देते हैं। . 31. जीवो व्व अपडिहय गई - जीव के समान अप्रतिहत गति वाले। जिस प्रकार पर-भव जाते हुए जीव की गति किसी से भी नहीं रुक सकती, उसी प्रकार वे महात्मा जिस दिशा की ओर विहार करते हैं, उस दिशा में चले ही जाते हैं। शहर, गाँव, अच्छे-बुरे क्षेत्र, उनकी गति अथवा दिशा को मोड़ नहीं सकते। यदि मार्ग में भयानक वन आ जाये अथवा आहारादि की अनुकूलता नहीं हो, तो वे इस प्रतिकूलता से भी नहीं रुक सकते और आर्यदेश में विचरते रहते हैं। वे आत्मिक पथ-मोक्ष मार्ग पर बिना रुके आगे बढ़ते रहते हैं। गामे गामे एगरायं णयरे णयरे य पंचरायं दुइजंते य जिइंदिए जियपरीसहे णिब्भओ विऊ सच्चित्ता-चित्त-मीसगेहिं दव्वेहिं विरायं गए, संचयाओ विरए, मुत्ते, लहुए, णिरवकंखे, जीवियमरणासविप्पमुक्के णिस्संधि णिव्वणं चरित्तं धीरे काएण फासयंते सययं अज्झप्पज्झाणजुत्ते, णिहुए, एगे चरेज धम्म। ____ शब्दार्थ - गामे गामे एगरायं - गाँव-गाँव में एक रात, णयरे-णयरे य पंच रायं - नगर-नगर में पांच रात, दुइजंते य - विचरता हुआ, जिइंदिए - जितेन्द्रिय, जियपरीसहे - परीषहों को जीतने वाला, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354