________________ 308 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०२ अ०५ . **************************************************************** निर्ग्रन्थों का अन्तर्दर्शन एवं से संजए विमुत्ते णिस्संगे णिप्परिग्गहरुइ णिम्ममे णिण्णेहबंधणे सव्वपावविरए वासीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिमुत्तालेढुकंचणे समे य माणावमाणणाए समियरए समियरागदोसे समिए समिइसु सम्मदिट्टि समे य जे सव्वपाणभूएसु से हु समणे सुयधारए उज्जुए संजए स साहु सरणं सव्वभूयाणं सव्वजगवच्छले सच्चभासए य संसारंतट्ठिए य संसारसमुच्छिण्णे सययं मरणाणुपारए पारगे य सव्वेसिं संसयाणं पवयणमायाहिं अट्ठहिं अट्ठकम्म-गंठी-विमोयगे अट्ठमय-महणे ससमयकुसले य भवइ सुहदुहणिव्विसेसे अभिंतरबाहिरम्मि सया तवोवहाणम्मि सुटुजुए खंते दंते य हियणिरए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणा-समिए उच्चारपासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-परिठावणिया समिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी चाई लज्जू धण्णे तवस्सी खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अणियाणे अबहिल्लेस्से. अममे अकिंचणे छिण्णगंथे णिरुवलेवे।। शब्दार्थ - एवं - इस प्रकार, से संजए - वह संयमी, विमुत्ते - विमुक्त-परिग्रह-रहित, णिस्संगेसंग-वर्जित, णिप्परिग्गहरुइ - परिग्रह-रुचि से दूर, णिम्मणे - ममत्व-रहित, णिण्णेहबंधणे - स्नेह-बंधन से रहित, सव्वपावविरए - समस्त पापों से रहित, वासीचंदणसमाणकप्पे - वसूला से मारने वाले और चन्दन का लेप करने वाले दोनों पर समभाव रखने वाला, समतिणमणिमुत्ताले?कंचणे - तृण और मणि, मोती तथा पत्थर व स्वर्ण में समान भाव रखने वाला, समे य माणावमाणणाए - मान और अपमान में समभाव रखने वाला, समियरए - पाप रूपी रज अथवा काम-भोग रूपी रज को शान्त करने वाला, समियरागदोसे - राग-द्वेष को शान्त करने वाला, समिएसमिइसु - पांच समितियों में सम्यक् प्रवृत्ति वाला, सम्मदिट्ठी - सम्यग्दृष्टि, समे य जे सव्वपाणभूएसु - जो समस्त त्रस-स्थावर जीवों में समभाव रखता है, से हु समणे- वही श्रमण, सुयधारए - श्रुत-धारक, उज्जुए - सरल स्वभावी, संजएसंयमी, से साहु सरणं सव्वभूयाणं - वह साधु सर्वभूत-छह-काय जीवों का शरण-रक्षक है, सव्वजगवच्छले - समस्त जगत् का वत्सल, सच्चभासए - सत्य भाषण करने वाला, य - और, संसारतहिए - संसार के अंत में स्थित, य - तथा, संसारसमुच्छिण्णे - संसार का समुच्छेद करने वाला, सययं मरणाणुपारए - सतत मृत्यु के पार जाने वाला, पारगे य सव्वेसिं संसयाणं - सभी संशयों का पारगामी, पवयणमायाहिं अट्ठहिं - आठ प्रवचन-माता, अट्ठकम्मगंठीविमोयगे - आठ कर्म-ग्रंथियों का छेदन करने वाला, अट्ठमयमहणे - आठ प्रकार के मद का मंथन करने वाला, ससमयकुसले - अपने सिद्धान्तों में कुशल, भवई - होता है, सुहदुह-णिव्विसेसे - सुख-दुःख को समान मानने वाला, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org