________________ निर्ग्रन्थों की 31 उपमाएं 313 **************************************************************** रहित होते हैं। मोह को जीतने के लिए स्नेह-रहित होना आवश्यक है। स्नेही जीव, निर्मोही नहीं हो सकता और बिना मोह नष्ट हुए वीतरागता भी प्राप्त नहीं हो सकती। 2. संखे विव णिरंजणे - शंख के समान निरंजन-शुद्ध। राग-द्वेष-मोह से रहित। जिस प्रकार शंख पर किसी भी प्रकार का दूसरा रंग नहीं चढ़ सकता, उसी प्रकार संत भी राग-रंग से वंचित होते हैं। संसारियों और भौतिक वस्तुओं तथा अपने शरीर के प्रति भी उनका राग नहीं होता। 3. कुम्मो विव इंदियेसु गुत्ते - कूर्म (कछुए) के समान गुप्तेन्द्रिय। जिस प्रकार कछुए के . अंगोपांग की रक्षा उसकी ढाल करती है, उसी प्रकार चारित्र रूपी ढाल के नीचे उन पवित्रात्माओं की इन्द्रियाँ सुरक्षित रहती हैं। मन पर अधिकार कर लेने से उनकी इन्द्रियाँ भी उनके अधीन रहती है। 4. जच्चकंचणगं व जायरूवे - उत्तम स्वर्ण के समान शुद्ध-दोष रहित। जिस प्रकार सोने को कीट नहीं लगता और वह सुन्दर दिखाई देता है, उसी प्रकार निर्मोही संत पर कर्म रूपी कीट नहीं चढ़ता। उनका चारित्र सोने के समान निर्मल एवं निष्कलंक रहता है। 5. पोक्खर पत्तं वणिरुवलेवे - पुष्कर पत्र पद्मदल के समान निर्लिप्त। जिस प्रकार कमल का पत्र, कीचड़ से उत्पन्न होकर भी कीचड़ से अलिप्त रहता है। कीचड़ तो ठीक, पर पानी से भी लिप्त नहीं होता. उसी प्रकार उन महर्षियों की उत्पत्ति विषय-विकार रूपी कीचड़ से होते हुए भी, वे उस कीचड़ से अलिप्त-भिन्न रहते हैं। माता-पितादि के स्नेह रूप पानी से भी वे ऊपर उठ चुके हैं अर्थात् कमल-पत्र के समान वे विषय-विकार रूपी कीचड़ और स्नेह रूपी पानी से ऊपर उठ कर अलिप्त हो चुके हैं। 6. चंदो विव सोमभावयाए - चन्द्रमा के समान सौम्य भाव वाले। जिस प्रकार चन्द्रमा सौम्य और शीतल होता है। उसका शीतल प्रकाश, रात्रि को सुहावनी बना देता है। गरमी के दिनों में सूर्य के भीषण ताप से जब हम घबड़ा जाते हैं, तब चन्द्रमा के शीतल प्रकाश वाली रात्रि हमें बहुत ही शान्ति देती है, उसी प्रकार उन अनगार भगवन्तों की पवित्र लेश्या-शुभ परिणाम सभी जीवों के लिए सुखदायक होते हैं। संसार के त्रि-ताप से तपे हुए घबराए हुए और झुलसे हुए जीवों के लिए वे संतप्रवर, चन्द्रमा के समान शांति प्रदायक हैं। उनके चेहरे और वाणी से झरती हुई सुधा में सराबोर होकर भव्य प्राणी अनुपम शान्ति का अनुभव करते हैं। ___ अंधेरी रात में चन्द्रमा का प्रकाश, पथिकों के लिए आधारभूत होता है, उसी प्रकार मिथ्यात्व एवं अज्ञान रूपी भाव अन्धकार से भरे हुए इस भयानक संसार में, उन शीतल स्वभाव वाले संतों के ज्ञान का शीतल प्रकाश, मोक्ष-मार्ग के पथिकों के लिए शान्तिदायक होता है। 7. सुरोव्व दित्ततेए - सूर्य के समान दीप्ततेज। जिस प्रकार सूर्य अपने तेज से प्रकाशित हो रहा है, उसी प्रकार वे तपोधनी महात्मा अपने तप के तेज से देदीप्यमान होते हैं। तपस्या के प्रभाव से दुर्बल और निर्बल होते हुए भी उनका आत्म-तेज बढ़ जाता है और उस आत्म-तेज के प्रभाव से तपस्वी के चेहरे का तेज भी बढ़ता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org