Book Title: Prashna Vyakarana Sutra
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 306
________________ परिग्रहत्याग नामक पंचम संवरद्वार हेय-ज्ञेय और उपादेय के तेतीस बोल जंबू! अपरिग्गहसंवुडे य समणे आरंभ-परिग्गहाओ विरए, विरए कोह-माणमाया-लोहा। एगे असंजमे, दो चेव रागदोसा, तिण्णि य दंड-गारवा य गुत्तीओ तिण्णि-तिण्णि य विराहणाओ, चत्तारि कसाया झाण-सण्णा-विकहा तहा य हुंति चउरो, पंच य किरियाओ समिइ-इंदिय-महव्वयाइंच, छज्जीवणिकाया, छच्च लेसाओ, सत्त भया, अट्ठ य मया, णव चेव य बंभचेर-वयगुत्ती, दसप्पगारे य समणधम्मे, एग्गारस य उवासंगाणं, बारस य भिक्खुपडिमा, तेरस किरियाठाणा य चउद्दस भूयगामा, पण्णरस परमाहम्मिया, गाहा सोलसया, सत्तरस असंजमे, अट्ठारस अबंभे, एगुणवीसइ णायज्झयणा, वीसं असमाहिट्ठाणा। . शब्दार्थ - जंबू - हे जंबू!, अपरिग्गहसंवुडे - मूर्छा-रहित और इन्द्रिय तथा कषाय के संवरण वाला, समणे- श्रमण, आरंभपरिग्गहाओ- आरम्भ और परिग्रह से, विरए - निवृत्त, कोह-माण-मायालोहा - क्रोध, मान, माया और लोभ से, एगे - एक, असंजमे - असंयम, दो चेव रागदोसा - राग और द्वेष रूप दो बन्ध, तिण्णि य दंडगारवा - तीन दण्ड और तीन गारव, गुतीओ तिण्णि - तीन गुप्तियाँ, तिण्णि य विराहणाओ - तीन विराधनाएं, चतारि कसाया - चार कषाय, झाणसण्णा - ध्यान, संज्ञा, विकहा तहा य हुंति चउरो - और ऐसे ही चार विकथाएं, पंच य किरियाओ - पांच क्रियाएं, समिइइंदिय महव्वयाई - समितियाँ, इन्द्रिएँ और महाव्रत भी पांच हैं, य - और, छज्जीवणिकाया - छह जीवनिकाय, छच्च लेसाओ - छह लेश्याएं, सत्त भया - सात भय, अट्ठ य मया - आठ मद-स्थान, णव चेव य बंभचेरवयगुत्ती - ब्रह्मचर्य व्रत की नौ गुप्तियाँ, दसप्पगारे य समणधम्मे - दस प्रकार का श्रमण-धर्म, एग्गारस य उवासगाणं - श्रावकों की ग्यारह पडिमा, बारस य भिक्खुपडिमा - साधु की बारह पडिमा, तेरस किरिया ठाणा - क्रिया स्थान तेरह, चउद्दस भूयगामा - जीवों के चौदह भेद, पण्णरस परमाहम्मिया - परमाधार्मिक पन्द्रह, गाहासोलसया - सोलह गाथा, सत्तरस असंजमे - सतरह प्रकार का असंयम, अट्ठारस अबंभे - अठारह प्रकार का अब्रह्मचर्य, एगुणवीसइ णायझयणा - ज्ञाताधर्मकथा सूत्र के उन्नीस अध्ययन, वीसं असमाहिट्ठाणा - असमाधि स्थान बीस। भावार्थ - गणधर सुधर्मा स्वामीजी महाराज कहते हैं कि हे जंबू! श्रमण वही है जो परिग्रह से रहित और इन्द्रियों के विषयों तथा कषाय से वंचित हो। आरम्भ और परिग्रह तथा क्रोध, मान, माया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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