Book Title: Prashna Vyakarana Sutra
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 286
________________ ब्रह्मचर्य की महिमा **************************************************************** भावार्थ - गणधर भगवान् सुधर्मा स्वामीजी महाराज कहते हैं कि हे जम्बू! अब ब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ संवरद्वार का वर्णन किया जाता है। अनशनादि उत्तम तप और पिण्डविशुद्धि आदि नियम तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्त्व और विनय का मूल ब्रह्मचर्य है अर्थात् ब्रह्मचर्य का पालक ही ज्ञानादि उत्तम गुणों को प्राप्त कर सकता है। ब्रह्मचर्य व्रत, यम-नियम और उत्तमोत्तम गुणों से युक्त है। जिस प्रकार सभी पर्वतों में हिमवान् पर्वत महान् और प्रभावशाली है, उसी प्रकार सभी व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत महान् भी है और प्रभावशाली भी है। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने से अन्त:करण प्रशस्त, गंभीर और स्थिर होता है। सरल हृदय वाले साधुजन इसका आचरण करते हैं। ब्रह्मचर्य व्रत मोक्ष का मार्ग है। सिद्धगति प्राप्ति के लिए अप्रशस्तरागादि रहित और विशुद्ध स्थान है। शाश्वत है - विशुद्ध एवं दोष रहित पाला हुआ ब्रह्मचर्य शाश्वत जीवन देने वाला है। फिर वह ब्रह्मचर्य शाश्वत हो जाता है। (विशुद्ध ब्रह्मचर्य व्रत का पालक, यदि देवलोक में जाता है, तो उच्च वैमानिक देव होता है-जिससे उसका ब्रह्मचर्य (मैथुन-रहित जीवन, बिना विरति के भी) स्थिर रहता है और उसके बाद मनुष्य भव में बाल ब्रह्मचारी अवस्था में ही प्रव्रजित होकर सिद्ध हो जाता है। इस प्रकार उसका ब्रह्मचर्य शाश्वत-सादि-अपर्यवसित हो जाता है) अव्याबाध है, पुनर्जन्म का अवरोधक है। प्रशस्त है, सौम्य है, शुभ है, शिव (सभी प्रकार के उपद्रवों से रहित) है, अचल (स्थिर) है, अक्षय (पूर्णता प्रदान करने-स्थिर रखने वाला) है। श्रेष्ठ यतिवर्यो- श्रमणश्रेष्ठों द्वारा रक्षित है। ब्रह्मचर्य का पालन करना श्रेष्ठ है। महर्षियों ने ब्रह्मचर्य का उत्तम उपदेश दिया है। जो महापुरुष धीर, वीर, गंभीर, धैर्यवान् और धार्मिक हैं, वे ही शुद्ध रूप से सदैव ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। ब्रह्मचर्य भव्य है और भव्यजनों द्वारा आचरित है। नि:शंक है-ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला महानुभाव कामभोग के त्यागी होने के कारण शंका-रहित होते हैं। उन्हें किसी का भी भय नहीं होता। जिस प्रकार तुस (छिलके) रहित चावल स्वच्छ होता है, उसी प्रकार ब्रह्मचारी भी दोष रहित शुद्ध होते हैं। ब्रह्मचारी खेद से भी रहित होते हैं। ब्रह्मचारी भव्यात्मा निर्लिप्त होते हैं। उनमें मोह की लिप्तता नहीं होती। ब्रह्मचर्य निर्वृत्ति (चित्तशान्ति) का घर है। नियम से निष्प्रकम्प (अचल-अटल) है। तप और संयम का तो यह मूल ही है। पांच महाव्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा का प्रमुख स्थान है। समिति और गुप्ति (नव वाड़ रूप ब्रह्मचर्य गुप्ति) से गुप्त-रक्षित है। .. झाणणवरकवाडसुकय* मज्झप्पदिण्णफलिह सण्णद्धो * च्छइयदुग्गइपहसुगइपहदेसगं च लोगुत्तमं च वयमिणं पउमसरतलागपालिभयं महासगडअरगतुंबभूयं * 'सुकय' के आगे 'रक्खण' पाठ भी है। * 'सण्णद्धो' के स्थान 'सण्णद्धबद्धो' भी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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