________________ 283 तृतीय भावना-स्त्रियों के रूप-दर्शन का त्याग ***************************************************** परिजन-कथा - अमुक स्त्री दासी-सेविका होते हुए भी वह और उसकी पुत्रियाँ और परिवार बड़ा सुन्दर, मोहक, चतुर, स्नेहशील और आकर्षक है। व्यवहार कुशल हैं। यथा - "चेटिका परिवारोऽपि, तस्याः कान्तो विचक्षणः भावज्ञः स्नेहवान् दक्षो, विनीतः सुकुलस्तथा।" तृतीय भावना-स्त्रियों के रूप-दर्शन का त्याग तइयं णारीणं हसिय-भणियं चेट्ठिय-विपेक्खिय-गइ-विलास-कीलियं-विब्बोइयणट्ट-गीय-वाइय-सरीर-संठाण-वण्ण-कर-चरण-णयण-लावण्ण-रूव-जोव्वणपयोहरा-धर-वत्थालंकार-भूसणाणि य गुज्झोवगासियाई अण्णाणि य एवमाइयाई तव संजम बंभचेरघाओवघाइयाइं अणुचर-माणेणं बंभचेर ण चक्खुसा ण मणसा ण वयसा पत्थेयव्वाइं पावकम्माइयं एवं इत्थीरूवविरइ-समिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा आरयमण-विरयगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते। शब्दार्थ - तइयं - तृतीय, णारीणं - स्त्रियों के, हसिय-भणियं - हास्य और विकारयुक्त भाषण, चेट्ठिय - चेष्टा, विपेक्खिय - विप्रेक्षण-कटाक्ष, गइ - गति-चाल, विलास-कीलियं - विलास और क्रीड़ा, विब्बोइय - कामोत्पादक शृंगार चेष्टा, णट्ट - नाच, गीय - गीत, वाइय - बाजा बजाना, सरीरसंठाण - शरीर का गठन, वण्ण - वर्ण, करचरणणयण - हाथ, पाँव और आँखों का, लावण्णरूव-जोव्वण - लावण्य रूप और यौवन, पयोहराधर - स्तन, अंधर, वत्थालंकार-भूसणाणि - वस्त्र, अलंकार और शरीर का मण्डन, य - और, गुज्झोवगासियाई - गुह्य एवं लज्जनीय अंगों को, अण्णाणि य एवमाइयाई - इसी प्रकार के अन्य, तवसंजमबंभचेर-घाओवघाइयाइं - तप, संयम और ब्रह्मचर्य की घात और उपघात करने वाली, अणुचरमाणेणं बंभचेरं - ब्रह्मचर्य पालक को, ण चक्खुसा ण मणसा ण वयसा - आंखों से न देखे, मन से न सोचे और वचनों से न बोले, ण पत्थेयव्वाइं पावकम्माई - पापयुक्त कर्मों की प्रार्थना-इच्छा भी नहीं करे, एवं - इस प्रकार, इत्थी-रूव-विरइसमिइजोगेण - स्त्रियों के रूप दर्शन की विरति रूप समिति के योग से, भाविओ- भावित, भवइ - / होती है, अंतरप्पा - अन्तरात्मा, आरयमण विरयगामधम्मे - मैथुन से निवृत्त और इन्द्रिय लोलपुता से रहित, जिइंदिए - जितेन्द्रिय, बंभचेरगुत्ते - ब्रह्मचर्य गुप्त। भावार्थ - तीसरा भावना रूपदर्शन-वर्जन है। ब्रह्मचारी पुरुष स्त्रियों की हास्य-मुद्रा, रागवर्द्धक वचन, विकारोत्पादक-चेष्टा, कटाक्षयुक्त दृष्टि, चाल, विलास (हावभाव) क्रीड़ा, कामोत्पादक शृंगारिक चेष्टाएं, नाच, गीत, वाद्य, शरीर का गठन एवं निखार, वर्ण (रंग) हाथ, पांव, आँखें, लावण्य, रूप, यौवन, पयोधर (स्तन), ओष्ठ, वस्त्र, अलंकार और आभूषण आदि से की हुई शरीर की शोभा और जंघा आदि गुप्त अंग तथा इसी प्रकार के अन्य दृश्य नहीं देखे। इन्हें देखने की चेष्टा, तप, संयम और ब्रह्मचर्य का घात एवं उपघात करने वाली है और पापकर्म युक्त है। ब्रह्मचर्य के पालक को स्त्रियों के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org