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कंचना के लिए - इसकी कथा अप्रसिद्ध । टीकाकार लिखते हैं कि कोई आचार्य कञ्चना को चिल्लणा बतलाते हैं, किन्तु वृहट्टीकाकार ने भी अनभिज्ञता बतलाई है।
रत्तसुभद्रा के लिए सुभद्रा श्रीकृष्ण की बहन थी। वह अर्जुन में अनुरक्त थी । इस कारण उसका 'रक्तसुभद्रा' नाम हुआ। इसके लिए श्रीकृष्ण द्वारा भेजी हुई सेना से अर्जुन का युद्ध हुआ था ।
अहिल्या के लिए मूलपाठ में कहीं इसे "अहिन्नियाए" - अहिन्निका कहा है। जैन - शास्त्रों में इसकी कथा नहीं मिलती। टीकाकार भी अनभिज्ञता बतलाते हैं ।
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स्त्रियों के लिए हुए जन-संहारक युद्ध
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सुवर्णगुलिका - सिन्दु - सौवीर देश के अधिपति, विदर्भ नरेश उदयन की रानी प्रभावती की दासी देवदत्ता, गुटिका के प्रयोग से स्वर्ण जैसी कांति वाली हो गई। इससे उसका नाम 'सुवर्णगुलिका' हो गया। उसका उज्जयिनी नरेश चण्डप्रद्योत ने हरण किया। इस निमित्त से राजा उदयन और चण्डप्रद्योत्त के बीच युद्ध हुआ था।
किन्नरी और सुरूपविद्युत्मति की कथा भी अप्रसिद्ध है ।
रोहिणी के लिए अरिष्टपुर के राजा की पौत्री और राजकुमार हिरण्यनाभ की पुत्री रोहिणी के स्वयंवर में वसुदेवजी के साथ अन्य राजाओं का युद्ध हुआ था। युद्ध में वसुदेवजी ने विजय प्राप्त कर रोहिणी से विवाह किया। इसके गर्भ से बलदेवजी का जन्म हुआ था।
हैं ।
. सूत्रकार कहते हैं कि इनके अतिरिक्त अन्य भी बहुत-से युद्ध, स्त्रियों में गृद्ध मनुष्यों द्वारा हुए एसो सो अबंभस्स फलवित्रागो इहलोइओ परलोइओ य अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओं बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चइ, ण य अवेयइत्ता अस्थि हु मोक्खोत्ति, एवमाहंसु णायकुलणंदणो महप्पा जिणोउ वीरवरणामधिज्जो कहेसी य अबंभस्स फलविवागं एयं । तं अबंभंवि चउत्थं सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स पत्थणिज्जं एवं चिरपरिचियमणुगयं दुरंतं । त्तिबेमिं ।
।। चउत्थं अहम्मदारं सम्मत्तं ॥
शब्वदार्त एसो इस प्रकार का, सो यह, अबंभस्स - अब्रह्मचर्य-मैथुन का, फलविवागो फल भोग है, इहलोइओ परलोइओ - इस लौकिक और पारलौकिक, अप्पसुहो- अल्प सुख, बहुदुक्खो - बहुत-से दुःखों से भरा हुआ, महब्भओ महाभयानक, बहुरयप्पगाढो पापरूपी बहुतसीरज से प्रगाढ व्याप्तं, दारुणो- दारुण, कक्कसो- कर्कश, असाओ असाता - शान्ति से वञ्चित, वाससहस्सेहिं - हजारों वर्षों के बाद भी, मुच्चइ ण य मुक्त नहीं होता, अवेयइत्ता - बिना भोगे,
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