________________ 192 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 1 अ०५ ******************************** *************************** परिग्रह के पाश में देवगण भी बंधे हैं . तं य पुण परिग्गहं ममायंति लोहघत्था भवणवर-विमाण-वासिणो परिग्गहरुई परिग्गहे विविहकरणबुद्धी देवणिकाया य असुर-भुयग-गरुल-विजु-जलण-दीवउदहि-दिसि-पवण-थणिय-अणवण्णिय-पणवण्णिय-इसिवाइय-भूयवाइय-कंदियमहाकंदिय-कुहंड-पयंगदेवा पिसाय-भूय-जक्ख-रक्खस किण्णर-किंपुरिस-महोरगगंधव्वा-य तिरियवासी, पंचविहा जोइसिया य देवा बहस्सई-चंद-सूर-सुक्क-सणिच्छरा राहु-धूमकेऊ-बुहा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकणयवण्णा जे य गहा जोइसिम्मि चारं चरंति केऊ य गइरईया अट्ठावीसइविहा य णक्खत्त देवगणा णाणासंठाणसंठियाओ य तारगाओ ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम-मंडलगई उवरिचरा। शब्दार्थ - तं - उस, पुण - फिर, परिग्गहं - परिग्रह पर, ममायंति - ममता करते हैं, लोहघत्थालोभ ग्रस्त होकर, भवणवरविमाणवासिणो - भवनवासी और उत्तम विमानवासी देव, परिग्गहरुई - परिग्रह में रुचि रखते हैं, परिग्गहे - परिग्रह का, विविहकरणबुद्धि - विविध प्रकार से संग्रह करने का विचार रखने वाले, देवणिकाया - देवगण भी परिग्रह को स्वीकार करके हैं, य - और, असुरभुयगगरुलविजुलणदीवउदहिदिसिपवणथणिय - असुरकुमार, नागकुमार, गरुड़ की ध्वजा वाले सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, दीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार, अणवण्णियपणवण्णियइसिवाइयभूयवाइयकंदियमहाकंदियकुहंडपयंगदेवा - आणपन्निक, पाणपन्नि, ऋषिवादिक, भूतवादिक, कन्दित, महाकन्दित, कुष्माण्ड और पतंगदेव, पिसायभूयजक्खरक्खसकिण्णरकिंपुरिसमहोरगगंधव्वा - पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व, तिरियवासी - तिर्यग् लोक में निवास करने वाले व्यन्तर देव, पंचविहा - पाँच प्रकार के, जोइसिया - ज्योतिषी, देवा - देव, वहस्सईचंदसूरसुक्कसणिच्छरा - बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र और शनिश्चर, राहुधूमकेउबुहा - राहु, धुमकेतु, बुध, य - और, गहा - ग्रह, जोइसम्मि - ज्योतिष्चक्र में, चार चरंति - विचरते हैं, य - और, गइरईया - जिनकी गति में रति है, अट्ठावीसविहाअट्ठाईस भेद वाले, णक्खत्तदेवगणा - अभिजित आदि नक्षत्रगण, णाणासंठाणसंठियाओ - नाना प्रकार के संस्थान वाले, तारगाओ - तारागण, ठियलेस्सा - जिनका दीप्ति बराबर स्थित रहती है, चारिणो - विचरते रहते हैं, अविस्साममंडलगई - जो अविश्राम गति वाले मण्डल के रूप में, उवरिचरा - तिर्यग् लोक के ऊपर के भाग में रहते हैं। .. भावार्थ - पुनः भवंनवासी और उत्तम विमानवासी देव भी परिग्रह में रुचि रखते हैं। वे लोभवश परिग्रह में ममत्व रखते हैं। विविध प्रकार के परिग्रह का संग्रह करने वाले देवनिकाय में-असरकुमार, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org