________________ 260 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०२ अ०३ **************************************************************** 6. प्रवचन साधर्मिक - एक सिद्धान्त को मानने वाले, एक प्रकार की श्रद्धा वाले ऐसे साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका। 7. लिंग साधर्मिक - एक ही प्रकार के वेश वाले-रजोहरण और मुखवस्त्रिका युक्त साधुसाध्वी तथा श्रमणभूत श्रावक। 8. दर्शन साधर्मिक - समान दर्शनी क्षायोपशमिक, ओपशमिक और क्षायिक सम्यग्दृष्टि की अपने हो समान दृष्टि वाले से समानता होना। 9. ज्ञान साधर्मिक - मति आदि ज्ञान की समानता युक्त। 10. चारित्र साधर्मिक - सामायिकादि समान चारित्र वाले साधु-साध्वी.।. . . 11. अभिग्रह साधर्मिक - समान अभिग्रह वाले-जिन्होंने तप-साधना करके आहारांदि ग्रहण में एक समान नियम लिया हो। : 12. भावना साधर्मिक - अनित्यादि भावना में समान रूप से बरतने वाले। उपरोक्त बारह प्रकार के साधर्मिकों में श्रावक भी साधु का साधर्मिक है-प्रवचन, दर्शन और ज्ञान की अपेक्षा। आराधना का फल इमंच परदव्व-हरण-वेरमण-परिरक्खणट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभावियं आगमेसिभई सुद्धं णेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाणं विउवसमणं। ___ शब्दार्थ - इमं - ये, परदव्व-हरण-वेरमण-परिरक्खणट्ठयाए - पर-द्रव्य हरण त्याग व्रत की रक्षा के लिए, पावयणं - प्रवचन, भगवया - भगवान् ने, सुकहियं - कहे हैं, अत्तहियं - आत्म-हितार्थ, पेच्चाभावियं - जन्मान्तर में शुभ फल देने वाले, आगमेसिभदं - भविष्य में कल्याण का हेतु, सुद्धं - शुद्ध, णेयाउयं - न्याययुक्त, अकुडिलं - कुटिलतारहित सरल, अणुत्तरं - प्रधान, सव्वदुक्खपावाणं - समस्त दु:ख और पापों को, विउवसमणं - शान्त करने वाले। ___भावार्थ - पराये द्रव्य के हरण रूप पापकृत्य से विरत करने वाले इस महाव्रत की रक्षा के लिए भगवान् ने उत्तम प्रवचन कहा है। यह व्रत आत्मा के लिए हितकारी है, परभव में शुभ फल देने वाला है और भविष्य में कल्याणकारी है। यह प्रवचन शुद्ध है, न्याय से युक्त है, कुटिलता-रहित सरल है, उत्तमोत्तम है और समस्त दुःखों और पापों को शान्त करने वाला है। अस्तेय व्रत की पांच भावनाएं तस्स इमा पंच भावणाओ होंति परदव्व-हरण-वेरमण-परिरक्खणट्ठयाए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org|