________________ 240 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ० 2 **************************************************************** लौकिक और लोकोत्तर दोनों प्रकार से उपकारी नहीं है, इस प्रकार का वचन सत्य हो, तो भी नहीं बोलना चाहिए। विवेचन - सत्य-भाषण का महत्त्व बताने के बाद आगमकार महर्षि उस सदोष सत्य से सावधान करते हैं, जो दुःखदायक हो, आघातकारी हो, पापवर्द्धक हो यावत् पीड़ाकारी हो। 'असत्य-भाषण नहीं करना' इस प्रकार असत्य-त्याग रूप विरति तो होती है, परन्तु सभी प्रकार का सत्य बोलना ही चाहिएऐसी बात नहीं। बोलने की आवश्यकता हो, तंब निर्दोष सत्य बोलना चाहिए। आगमकार भगवंत ने निर्दोष-वाणी बोलने के विषय में आचारांग, सूयगडांग, दशवैकालिक आदि में विस्तृत विधान किये हैं। . बोलने योग्य वचन अह केरिसगं पुणाइ सच्चं तु भासियव्वं? जं तं दव्वेहिं पजवेहिं य गुणेहिं कम्मेहिं बहुविहेहिं सिप्पेहिं आगमेहिं य णामक्खाय-णिवाय-उवसग्ग तद्धियसमाससंधिपदहेउ-जोगियउणाइकिरियाविहाण-धाउसरविभत्तिवण्णजुत्तं तिकल्लं दसविहं वि सच्चं जह भणियं तह य कम्मुणा होइ दुवालसविहा होइ भासा, वयणं वि य होइ : सोलसविहं। एवं अरहंतमणुण्णायं समिक्खियं संजएण कालम्मि य वत्तव्वं। . . शब्दार्थ - अह - तब, केरिसगं - कैसा, पुणाइ - पुनः, सच्चं - सत्य-वचन, भासियव्वं - बोलना चाहिए, जंतं - वह सत्य-वचन, दव्येहिं - द्रव्य से, पज्जवेहिं - पर्याय से, गुणेहिं - गुण से, कम्मेहिकर्म से, बहुविहेहिं - सिप्पेहिं - अनेक प्रकार के शिल्प तथा चित्रकर्म से, आगमेहिं - आगमयुक्त, णामक्खाय - नाम, आख्यात, णिवाय - निपात, उवसग्ग - उपसर्ग, तद्भिय - तद्धित, समास - समास, संधि - संधि, पद - पद, हेउ - हेतु, जोगिय - यौगिक, उणाइ - उणादि-कृदन्त, किरियाविहाण - क्रिया-विधान, धाउ - धातु, सर - अकारादि स्वर, विभत्ति - विभक्ति, वण्णजुत्तं - वर्णों से युक्त, तिकल्लं - भूत, भविष्य और वर्तमान से युक्त, दसविहं - दस प्रकार का, सच्चं - सत्य, भणियं - बोलना, जह - जैसा, तह - वैसा, कम्मुणा - क्रिया द्वारा, दुवालसविहा - बारह प्रकार की, भासा - भाषा, होई- है, य- और, सोलसविहं- सोलह प्रकार का, वयणं - वचन, एवं - इस प्रकार, अरहंतअरिहंतों ने, अणुण्णायं - आज्ञा दी, संजएण - संयमधारी को, समिक्खियं - सोच-विचार कर, कालम्मि - अवसर में, वत्तव्वं - भाषण करना चाहिए। भावार्थ - अब किस प्रकार के वचन बोलना चाहिए, यह बताते हुए आगमकार स्वयं निर्देशित करते हैं कि जो सत्य-वचन द्रव्य, पर्याय, गुण, कर्म, अनेक प्रकार के शिल्प, आगम (सिद्धान्त) नाम, आख्यात, निपात, उपसर्ग, तद्धित, समास, सन्धि, पद, हेतु, यौगिक, उणादि, क्रियाविधान, धातु, स्वर, विभक्ति एवं व्यंजनों से युक्त, भूत, भविष्य और वर्तमान-इन तीनों कालों से युक्त और दस प्रकार के सत्य बोलना चाहिए। जिस प्रकार बोला जाये उसी प्रकार हाथ आदि की क्रिया से भी सूचित करना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org