________________ बोलने योग्य वचन' . 241 ****** ***************************************************** चाहिये अथवा कार्य होना चाहिये। भाषा, बारह प्रकार की है और सोलह प्रकार के वचन हैं। इस प्रकार अरिहंतों ने सत्य के स्वरूप को निर्णय करके निर्दोष सत्य बोलने की आज्ञा दी है। संयमी आत्माओं को चाहिए कि सम्यक् विचार-पूर्वक बोलने के समय निर्दोष सत्य बोलना चाहिए। विवेचन - इस सूत्र में निर्दोष सत्य-भाषण की अनुज्ञा दी गई है। द्रव्य-जो त्रिकालवर्ती-शाश्वत हो, नित्य हो, जैसे जीव पुद्गल आदि द्रव्य हैं। पर्याय-द्रव्य की नवीन-पुरातन आदि क्रमवर्ती अवस्था। गुण-जीव-द्रव्य के ज्ञानादि और पुद्गल-द्रव्य के वर्णादि गुण। कर्म-कृषि, शिल्प आदि व्यापार रूप। नाम-व्युत्पन्न अव्युत्पन्न भेद से दो प्रकार का है। जिनदास आदि नाम व्युत्पन्न हैं और डित्थ आदि नाम अव्युत्पन्न हैं। आख्यात- क्रियापद जो भत, भविष्य और वर्तमान भेद से तीन प्रकार का है। . निपात - अर्थ में विशेषता लाने वाले 'खलु''इव' 'च' 'वा' आदि शब्द। उपसर्ग - धातु के साथ लगने वाले 'प्रो' 'परा' 'सम्' 'अपि' आदि। इनसे धातु के अर्थ में भित्रता आती है। जैसे-'हार' शब्द के आगे 'प्र' उपसर्ग लगने से 'प्रहार' और 'आ' लगने से आहार बन जाता है। तद्धित - जिस शब्द के अन्त में प्रत्यय हो। जैसे - गो शब्द के प्रत्यय लगने पर 'गव्य' और . नाभि शब्द से 'नाभेय' बनता है। " . समास - परस्पर सम्बन्धित दो या अधिक पदों के मध्य की विभक्ति का लोप करके मिलाये हुए . अनेक पद। अनेक पदों को मिलाकर एक करना जैसे-राजपुरुष, गोदुग्ध आदि। - सन्धि-मेल-मिलन। वर्गों के मिलने से जो ध्वनि होती है। जैसे-'श्रावकः अत्र' 'श्रावकोऽत्र' 'कवलाहार' 'दुग्धपान' आदि। पद-विभक्ति का अन्तिम शब्द। वाक्य का एक विभाग। हेतु-साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध रखने वाला। जैसे धूम के हेतु से अग्नि का अनुमान करना। साध्य रूप अग्नि को बताने वाला हेतु 'धुओं' है। यौगिक-योग से सम्बन्धित शब्द। जैसे-पद्मनाभ, नीलकान्त दण्डी आदि। उणादि-जिस शब्द के अन्त में उण् प्रत्यय हो, जैसे-साधु, भिक्षु, स्वादु, कारु आदि। क्रियाविधान - जिस शब्द में क्रियाविधान मुख्य हो। जैसे-पाचक, पाठक, कुंभकार, बुनकर, कृषक आदि। . धातु - शब्दों का वह मूल जिससे क्रियाएं बनी या बनती हैं। संस्कृत में भू, कृ, घृ आदि धातु। स्वर - अकार आदि अक्षर अथवा षडज आदि स्वर। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org