________________ उपसंहार 249 **************************************************************** उपसंहार एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहियं, इमेहिं पंचहिं वि कारणेहिं मण-वयण-काय-परिरक्खिएहिं णिच्चं आमरणत च एस जोगो णेयव्यो धिइमया मइमया अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सव्व-जिणमणुण्णाओ। शब्दार्थ - एवमिणं.- यह, संवरस्स - संवर का, दारं - द्वार, सम्मं - भली-भांति, संवरियं - पालन करने से, सुप्पणिहियं - सुप्रणिहित-सुरक्षित, होइ - होता है, इमेहिं - इन, पंचहिं - पांच, कारणेहिं- कारणों से, मण-वयण-काय-परिरक्खिएहिं - मन, वचन और काया द्वारा रक्षण करता हुआ, णिच्चं - सदैव, आमरणंतं - मरण-पर्यन्त, एस - इस, जोगो - व्रत का, णेयव्यो - पालन करना, धिइमया - धैर्य सम्पन्न, मइमया - बुद्धिमान्, अणासवो - आस्रव रहित, अकलुसो - कलुषता-रहित, अच्छिद्दो - छिद्र-रहित, अपरिस्सावी - कर्मों के प्रवेश से रहित, असंकिलिट्ठो - संक्लेश-रहित, सव्वजिणमणुण्णाओ - सभी जिनेश्वरों द्वारा आज्ञापित है। . भावार्थ - इस प्रकार पांच भावनाओं से युक्त इस संवरद्वार का सम्यक् रूप से पालन करने से महाव्रत सुरक्षित रहता है। इसलिए धैर्य सम्पन्न बुद्धिमान् साधु को चाहिए कि मन, वचन और काया से दूसरे महाव्रत की रक्षा करता हुआ, इन पांच भावनाओं का जीवन-पर्यन्त पालन करता रहे। यह महाव्रत आस्रव का निरोधक, कलुषित भावों से रहित-शुभ भावों से युक्त, छिद्र रहित, कर्मों के आगमन का अवरोधक तथा संक्लेश से रहित है। भूत, भविष्य और वर्तमान के सभी जिनेश्वर भगवंतों द्वारा आज्ञापित-उपदिष्ट है। ___ एवं बिइयं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं अणुपालियं आणाए आराहियं भवइ। एवं णायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धं , सिद्धवरसासणमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्थं। ॥बिइयं संवरदारं सम्मत्तं॥त्ति बेमि॥ शब्दार्थ - एवं - इस प्रकार, बिइयं - द्वितीय, संवरदारं - संवर-द्वार, फासियं - स्पृष्ट, पालियंपालित, सोहियं - शोभित, तीरियं - तीरित, किट्टियं - कीर्तित, आराहियं - आराधित, भवइ - होता है, णायमुणिणा भगवया - ज्ञातृ-कुलोत्पन्न भगवान् महावीर स्वामी द्वारा पण्णवियं - फरमाया, परूवियंप्ररूपित, पसिद्धं - प्ररिद्धि, सिद्धं - सिद्ध, सिद्धवरसासणं - अपने कार्य को सिद्ध करने वाले तीर्थंकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org