Book Title: Prashna Vyakarana Sutra
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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________________ 206 ********************* ********************************** ___ . प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ० 1 ********** 15. महंती 16. बोही 17. बुद्धी 18. धिई 19. समिद्धी 20. रिद्धी 21. विद्धी 22. ठिई 23. पुट्ठी 24. णंदा 25. भद्दा द. विसुद्धी 27. लद्धी 28. विसिदिट्ठी 29. कल्लाणं 30. मंगलं 31. पमोओ 32. विभूई 33. रक्खा 34. सिद्धावासो 35. अणासवो 36. केवलीण ठाणं 37. सिवं 38. समिई 39. सीलं 40. संजमोत्ति य 41. सीलपरिघरो 42. संवरो य 43. गुत्ती 44. ववसाओ 45. उस्सओ 46. जण्णो 47. आययणं 48. जयणं 49. अप्पमाओ 50. अस्सासो 51. वीसासो 52. अभओ 53. सव्वस्स वि अमाघाओ 54. चोक्ख 55. पवित्ता 56. सूई 57. पूया 58. विमल 59. पभासा य 60. णिम्मलयर त्ति एवमाईणि णिययगुणणिम्मियाई पज्जवणामाणि होति अहिंसाए भगवईए। शब्दार्थ - तत्थ - पाँच संवरद्वारों में, पढमं - पहला, जा - जो, सा - वह, सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स - देव, मनुष्य और असुरों सहित समस्त लोक के लिए, भवइ - है, दीवो - दीपक के समान प्रकाशदात्री अथवा संसार-सागर में डूबते हुए प्राणियों के लिए दीप के समान, ताणं - रक्षा करने वाली, सरणं - आश्रय देने वाली, गई - गति, पइट्ठा - प्रतिष्ठा रूप, 1. णिव्वाणं - निर्वाण, 2. णिव्वुई - निवृत्ति, 3. समाही - समाधि, 4. सत्ती - शक्ति या शान्ति देनेवाली, 5. कित्ती - कीर्ति, 6. कंती - कान्ति, 7. रई - रति, 8. विरई - विरति, 9. सुयंग - श्रुतांग, 10. तित्ती - तृप्ति, 11. दया - रक्षा रूप दया-अनुकम्पा, 12. विमुत्ति - मुक्त कराने वाली, 13. खंती - शान्ति, 14. सम्मत्ताराहणा - सम्यक्त्वाराधन, 15. महंती - महती, 16. बोहो - बोधि, 17. बुद्धी - बुद्धि, 18. धिई - धृति, 19. समिद्धी - समृद्धि, 20. रिद्धी - ऋद्धि, 21. विद्धी - वृद्धि, 22. ठिई - स्थिति, 23. पुट्ठी - पुष्टिसमृद्धि, 24. णंदा - नन्दा, 25. भद्दा - कल्याण करने वाली, 26. विसुद्धी - विशेष शुद्ध बनाने वाली, 27. लद्धी - लब्धि, 28. विसिट्ठदिट्ठी - विशिष्ट-दृष्टि, 29. कल्लाणं - कल्याण, 30. मंगलं - मंगल करने वाली, 31. पमोओ - प्रमोद दाता, 32. विभूई - विभूति, 33. रक्खा - रक्षा, 34. सिद्धावासो - मोक्ष के अक्षय निवास की दाता, 35. अणासवो - अनास्रव, 36. केवलीण ठाणं - केवली भगवान् का स्थान, 37. सिवं - शिव-मोक्ष का हेतु, 38. समिई - सम्यग् प्रवृत्ति कराने वाली, 39. सील - सदाचार, 40. संजमो - संयम, 41. सीलपरिघरो - शीलपरिगृह-चारित्र का घर, 42. संवरो - संवर, 43. गुत्ति - गुप्ति, 44. ववसाओ - व्यवसाय, 45. उस्सओ - शुभभावों को उन्नत करने वाली, 46. जण्णो - यज्ञ रूप, 47. आययणं- आयतन, 48. जयणं - यजना, 49. अप्पमाओअप्रमाद, 50. अस्साओ - आश्वासन रूप, 51. वीसासो - विश्वास देने वाली, 52. सव्वस्स वि अभओ - सभी को अभय देने वाली, 53. अमाघाओ - अमाघात या अमारी, 54. चोक्ख - चोक्षापवित्र, 55. पवित्ता - अतिशय पवित्र, 56. सूई - शुचि, 57. पूया - पूया अर्थात् पवित्र, 58. विमल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
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