________________ अहिंसा महाव्रत की प्रथम भावना 223 **************************************************************** प्रवचन का उद्देश्य और फल . इमं च णं सव्वजगजीव-रक्खणदयट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभावियं आगमेसिभद्धं सुद्धं णेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाणविउसमणं। शब्दार्थ - इमं - ये, सव्वजगजीवरक्खणदयट्ठयाए - समस्त जगत् के जीवों की रक्षा रूप दया के लिए, पावयणं - प्रवचन, भगवया - भगवान् ने, सुकहियं - उत्तम कहा है, अत्तहियं - आत्मा के लिए हितकारी, पेच्चाभावियं - जन्मान्तर में शुभ फल के दाता, आगमेसिभद्ध - भविष्य में कल्याण के हेतु, सुद्धं - शुद्ध, णेयाउयं - न्याययुक्त, अकुडिलं - कुटिलता से रहित-सरल, अणुत्तरं - प्रधान, सव्वदुक्खपावाण - समस्त दुःख और पापों को, विउसमणं - शान्त करने वाला। .. .. भावार्थ - समस्त जगत् के जीवों की रक्षा रूप दया के लिए भगवान् ने यह प्रवचन फरमाया है। भगवान् का यह प्रवचन अपनी आत्मा के लिए तथा समस्त जीवों के लिए हितकारी है। जन्मान्तर में शुभ फल का दाता है, भविष्य में कल्याण का हेतु है। इतना ही नहीं, वरन् यह प्रवचन शुद्ध, न्याययुक्त, मोक्ष के प्रति सरल, प्रधान और समस्त दुःखों तथा पापों को शान्त करने वाला है। विवेचन - जिनेश्वर भगवान् के प्रवचन-धर्मोपदेश का कारण इस सूत्रांश में बताया है। भगवान् के प्रवचन का उद्देश्य, विश्व के समस्त जीवों की रक्षा और दया है। कोई जीव, किसी को पीड़ित नहीं करे, दया भाव रखे और जीवों की रक्षा करे। इस अहिंसा के पालन से, पालक की आत्मा, पाप-कर्म से बचती हुई अपनी खुद की रक्षा करती है और अन्य प्राणियों की भी रक्षा करती है। भगवान् ने इस ' अहिंसा धर्म को शुद्ध एवं न्याययुक्त बताया है। ... अहिंसा महाव्रत की प्रथम भावना .. तस्स इमा. पंच भावणाओ पढमस्स वयस्स होति। पाणाइवायवेरमणपरिरक्खणट्ठयाए पढमं ठाण-दमण-गुणजोगजुंजणजुगंतरणिवाइयाए दिट्ठिए ईरियव्वं कीड-पयंग-तस-थावर-दयावरेण णिच्चं पुप्फ-फल-तय-पवाल-कंद-मूल-दगमट्टिय-बीय-हरिय-परिवज्जिएण सम्म। एवं खलु सव्वपाणा ण हीलियव्वा ण प्रिंदियव्वा ण गरहियव्वा ण हिंसियव्वा ण छिंदियव्वा ण भिंदियव्वा ण वहेयव्वा ण भयं दुक्खं च किंचि लब्भा पावेडं एवं ईरियासमिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा असबलमसंकिलिट्ठणिव्वणचरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू। शब्दार्थ - तस्स -. उस, पंच - पाँच, भावणाओ.- भावनाएँ, पढमस्स - प्रथम, वयस्स - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org