________________ 230 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०२ अ०१ ****************** ****** ************** वायातवदंसमसगसीयपरिरक्खणट्ठयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरियव्वं संजमेणं णिच्चं पडिलेहण-पप्फोडण-पमज्जणयाए अहो य राओ य अप्पमत्तेण होइ सययं णिक्खियव्वं च गिहियव्वं च भायणभंडोवहिउवगरणं एवं आयाणभंडणिक्खेवणा समिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा असबलमसंकिलिट्ठणिव्वणचरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू। शब्दार्थ - पंचमं - पाँचवीं, आयाणणिक्खेवणसमिइ - आदाननिक्षेप-समिति, पीढ-फलगसिज्जा-संथारग-वत्थ-पत्तकंबल-दंडग-रयहरण-चोलपट्टग-मुहपोत्तिय-पायपुंछणाई - पीठ, फलक, शय्या संस्तारक, वस्त्र, पात्र, कम्बल, दण्ड, रजोहरण, चोलपट्टा, मुंहपत्ति, पादप्रौंच्छन, एयंवि -- इन, संजमस्स - संयम की, उववूहणट्ठायाए - वृद्धि के लिए, वायातवदंसमसगसीयपरिरक्खणट्ठयाए.वायु, आतप, दंशमशक और शीत निवारण के लिए, उवगरणं - उपकरण, रागदोसरहियं - राग-द्वेष रहित / हो, परिहरियव्वं - धारण करना, संजएण - साधु को, णिच्चं - सदा, पडिलेहणपष्फोडणपमजणयाए- : प्रतिलेखना, प्रस्फोटन और रजोहरण द्वारा प्रमार्जन, अहो - दिन में, य - और, राओ - रात में, अप्पमत्तेण होइ - अप्रमत्त होकर, सययं - सतत्-सदाकाल, णिक्खियव्वं - रखे, गिहियव्यं - ग्रहण करे, भायणभंडोवहिउवगरणं - भण्डोपकरणों को, एवं - इस प्रकार, आयाणभंडणिक्खेवणासमिइजोगेणआदन-भंड-निक्षेपणा समिति का यथावत् पालन करे, भाविओ - भावित, भवइ - होता है, अंतरप्पा - अन्तरात्मा, असबलमसंकिलिणिव्वणचरित्तभावणाए - उसका चारित्र और परिणाम निर्मल विशुद्ध . और अखण्डित होता है, अहिंसए - अहिंसक, संजए-संयमधारी, सुसाहू - मोक्ष का साधक उत्तम साधु। भावार्थ - अहिंसा महाव्रत की पांचवीं भावना 'आदान-निक्षेपण' समिति है। संयम साधना में उपयोगी ऐसे उपकरण (साशन) को यतनापूर्वक ग्रहण करना एवं यतनापूर्वक रखना-'आदान-निक्षेपणं' समिति है। साधु को पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक, वस्त्र, पात्र, कम्बल, दण्ड, रजोहरण, चोलपट्टक, मुखवस्त्रिका, पादप्रौंच्छन आदि उपकरण, संयमवृद्धि के लिए तथा वायु, आतप, दंशमशक और शीत से बचाव करने के लिए हैं। इन्हें राग-द्वेष रहित होकर सदैव धारण करना चाहिए। इन उपकरणों की प्रतिलेखना (देखना-निरीक्षण करना) प्रस्फोटना (झटकना-फटकना) प्रमार्जना (रजोहरण से पूँजना) करनी चाहिए। दिन और रात में-सदैव अप्रमत्त रहता हुआ मुनि, पात्र और भण्डोपकरण ग्रहण करे और रखे। इस प्रकार आदान-निक्षेपणा समिति का यथावत् पालन करने से, साधु की अन्तरात्मा अहिंसा धर्म से प्रभावित होती है। उसका चारित्र और आत्म-परिणाम निर्मल, विशुद्ध होता है और महाव्रत अखण्डित रहता है। वह संयमवान् अहिंसक साधु मोक्ष का उत्तम साधक होता है। एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहियं इमेहिं पंचहिं वि कारणेहिं मणवयणकायपरिरक्खिएहिं णिच्चं आमरणंतं य एस जोगो णेयव्वो धिइमया मइमयां अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णाओ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org