________________ संवर नामक दूसरा श्रुतस्कंध अहिंसा संवर द्वार नामक.प्रथम अध्ययन ___ जंब! एत्तो संवरदाराई, पंच वोच्छामि आणुपुव्वीए। जह भणियाणि भगवया, सव्वदुक्खविमोक्खणट्ठाए॥१॥ शब्दार्थ - एत्तो - यहाँ से, संवरदाराई - संवर द्वारों को, पंच - पाँच, वोच्छामि - मैं कहूँगा, आणुपुब्बीए - अनुक्रम से, जह - जिस प्रकार, भणियाणि - कहा था, भगवया - भगवान् ने, सव्वदुक्खविमोक्खणट्ठाए - समस्त दुःखों का विनाश करने के लिए। भावार्थ - श्री सुधर्मास्वामी कहते हैं कि हे जम्बू! अब मैं उन पाँच संवरद्वारों को अनुक्रम से कहूंगा कि जिन्हें भगवान् महावीर स्वामी ने समस्त दुःखों को नष्ट करने के लिए कहा था। पढमं होइ अहिंसा, बिइयं सच्चवयणं ति पण्णत्तं। दत्तमणुण्णाय संवरो य, बंभचेरमपरिग्गहत्तं य॥२॥ शब्दार्थ - पढमं - प्रथम, होइ - है, अहिंसा - हिंसा नहीं करना, बिइयं - दूसरा, सच्चवयणं - सत्य वचन, पण्णत्तं - कहा गया है, दत्तं - जो दिया जाए, अणुण्णाय - स्वामी की आज्ञा से, संवरोसंवर, य - और, बंभचेर - ब्रह्मचर्य, अपरिग्गहत्तं - अपरिग्रह। भावार्थ - पहला संवरद्वार अहिंसा है। दूसरा सत्य वचन, तीसरा स्वामी की आज्ञा से दिया हुआ, चौथा ब्रह्मचर्य और पाँचवाँ अपरिग्रह कहा गया है। तत्थ पढमं अहिंसा, तस-थावर-सव्वभूय-खेमकरी। तीसे सभावणाओ, किंचिवुच्छंगुणुद्देसं // 3 // शब्दार्थ - तत्थ - इनमें, पढमं - प्रथम, तस-थावर-सव्वभूय-खेमकरी - त्रस और स्थावर सभी प्राणियों का क्षेम करने वाली, तीसे - उसके, सभावणाओ - भावनाओं सहित, किंचि - कुछ, वुच्छं - वर्णन करूँगा, गुणुद्देसं - गुणदेश को। भावार्थ - पाँच संवर द्वारों में पहला संवर अहिंसा है। यह अहिंसा, त्रस और स्थावर सभी प्राणियों का क्षेम करने वाली है। मैं अहिंसा का भावनाओं सहित कुछ गुणों का वर्णन करूंगा। ताणि उ इमाणि सुव्वय! महव्वयाई लोयहियसव्वयाई सुयसागरदेसियाई तवसंजममहब्बयाई सीलगुणवरव्वयाइं सच्चज्जवव्वयाइं णरय-तिरिय-मणुय-देवगइविवज्जगाई सव्वजिणसासणगाई कम्मरयविदारगाइं भवसयविणासगाई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org