________________ 210 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०१ ################ #######******************** ***** दुट्ठियाणं - रोनी मनुष्यों के लिए, ओसहिबलं - औषधि के समान, अडवीमाझे - घोर वन में चलने वालों के लिए, विसत्थगमणं - विश्वस्त मार्ग के समान, एत्तो - इससे भी, विसिद्रुतरिया - अधिक विशिष्ट है, अहिंसा - अहिंसा, पुढवीजलअगणिमारुयवणस्सइ बीयहरियजलयरथलयरखहयरतसथावरसव्वभूयखेमकरी - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, बीज, हरित जलचर, स्थलचर, खेचर, त्रस और स्थावर समस्त प्राणियों का कल्याण करने वाली है। भावार्थ - यह अहिंसा भगवती, संसार के भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत है, रक्षिका है। * जिस प्रकार पक्षियों के लिए आकाश में उड़ना-गमन करना हितकारी है। प्यास से पीड़ित मनुष्यादि के लिए जल प्राणाधार है, शान्तिदायक है, भूखे के लिए भोजन जीवनदायक है, समुद्र-यात्रा में जहाज पार पहुंचाने वाला है, चतुष्पद् पशुओं के लिए उनका स्थान आश्रयभूत है, रोगी के लिए औषधि हितकारी है और घोर अटवी में जाने वाले के लिए विश्वस्त मार्ग के समान है, उसी प्रकार वरन् जीवों के लिए इनसे भी अधिक अहिंसा भगवती, शरणभूत हैं, सुखदायिका, रक्षिका एवं पोषिका है। वह सर्वोत्तम एवं विशिष्टतर अहिंसा, पृथ्वी, जल, अग्नि, मारुत (वायु) वनस्पति, बीज, हरित, जलचर, स्थलचर, नभचर, त्रस और स्थावर, इन समस्त जीवों का क्षेम-कल्याण करने वाली है। विवेचन - अहिंसा अपने आप में अभया है-भय-विनाशिका है। जो भगवती अहिंसा का आश्रय लेता है, उसके भय दूर होते हैं। ऐसा जीव अन्य अनन्त जीवों के लिए अभयदाता हो जाता है और वह स्वयं भी भयातीत बन जाता है। . पक्षियों के लिए भूमिवास या पृथ्वी पर चलना भय युक्त होता है। कुत्ता बिल्ली आदि हिंसक पशु और पारधी आदि वधिक मनुष्य जीवन समाप्त करने के लिए तत्पर रहते हैं। किन्तु आकाश में गमन करते समय ये उपद्रव नहीं होते और वे निर्भयतापूर्वक गमन करते हैं, उसी प्रकार अहिंसा का आश्रय लेने वाला जीव इतना सुरक्षित हो जाता है कि फिर उसे हिंसा से उत्पन्न भय की भी आशंका ही नहीं रहती। उसके जीवन में हिंसा नहीं रहती, तो वैसा पाप-बन्ध भी नहीं होता और पूर्वबन्ध भी टूटते हैं। वह क्रमशः निर्भय बन जाता है। उसका शाश्वत निवास यह पृथ्वी नहीं, लोकाग्र हो जाता है। प्यासे व्यक्ति को पानी नहीं मिले तो वह जीवित नहीं रहता, पानी ही उसका जीवन बचा सकता है, तदनुसार मृत्यु-भय विकराल रूप से जीवों को भयभीत करता है। हिंसक जीव जिस प्रकार दूसरे जीवों को मारने में तत्पर रहता है, उसी प्रकार उसके पाप भी उसे मृत्यु-भय से भयभीत रखते हैं। किन्तु जिसने अहिंसा का आश्रय लिया, वह स्वयं दूसरों के लिए पानी के समान जीवनदाता बनता है और स्वयं भी अहिंसा रूपी अमृतपान करता हुआ अमर बन जाता है। यही बात भूखे के विषय में भी जाननी चाहिए। समुद्र में डूबते हुए के लिए जलयान रक्षक होकर पार पहुंचाता है, उसी प्रकार संसार रूपी समुद्र में डूब कर नष्ट होने वाले जीवों को अहिंसा भगवती पोत के समान रक्षिका एवं पार पहुंचाने वाली है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org