________________
स्त्रियों के लिए हुए जन-संहारक युद्ध
१८५
****************************************************************
स्त्रियों के लिए हुए जन-संहारक युद्ध मेहुणमूलं य सुव्वए तत्थ-तत्थ वत्तपुवा संगामा जणक्खयकरा सीयाए, दोवईए, कए, रुप्पिणीए, पउमावईए, ताराए, कंचणाए, रत्तसुभद्दाए, अहिल्लियाए, सुवण्णगुलियाए, किण्णरीए, सुरुवविज्जुमईए, रोहिणीए. य, अण्णेसु य एवमाइएसु बहवे महिलाकएसु सुव्वंति अइक्कंता संगामा गामधम्ममूला ? इहलोए ताव णट्ठा * परलोए वि य णट्ठा महया मोहतिमिसंधयारे घोरे तसथावरसुहुमबायरेसु पज्जत्तमपज्जत्तसाहारण-सरीरपत्तेयसरीरेसु य अंडय-पोयय-जराउय-रसय-संसेइम-समुच्छिम-उब्भियउववाइएसु य णरय-तिरिय-देव-माणुसेसु जरामरणरोगसोगबहुले पलिओवमसागरोवमाइं अणाईयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसार-कंतारं अणुपरियटृति जीवा मोहवससण्णिविट्ठा। . शब्दार्थ - मेहुणमूलं - मैथुन के मूल कारण से, सुव्वए - सुने जाते हैं, तत्थ-तत्थ - जहाँ-तहाँअनेक स्थानों पर, वत्तपुव्वा - पूर्व में हुए, जणक्खयकरा - जन क्षयकारी-नर संहारक, सीयाए - सीता के लिए, दोवईएकए - द्रोपदी के लिए किए, रुप्पिणीए - रुक्मिणी के लिए, पउमावईए - पद्मावती के लिए, ताराए - तारा के लिए, कंचणाए- कंचना के लिए, रत्तसुभद्दाए - रक्तसुभद्रा के लिए, अहिल्लियाए - अहिल्या के लिए, सुवण्णगुल्लियाए - सुवर्णगुलिका के लिए, किण्णरीए - किन्नरी के लिए, सुरुवविज्जुमईए - सुरूपविद्युत्मती के लिए, रोहिणीए - रोहिणी के लिए, य -
और, अण्णेसु - अन्य, एवमाइएसु - इसी प्रकार की, बहवे - बहुत-सी, महिलाकएसु - महिलाओं के लिए, सुव्वंति - सुने जाते हैं, अइक्कंता - अतीतकाल में किये, संगामा - संग्राम, गामधम्ममूला - ग्राम-धर्ममूलक-विषय हेतुक, इहलोए - इस लोक में, तावणट्ठा - नष्ट हो जाते हैं, परलोएवि - परलोक में भी, णट्ठा - नष्ट होते हैं, महयामोहतिमिसंधयारे घोरे - महामोह रूपी तिमिर के घोर अन्धकार में, तसर्थावर - त्रस और स्वथावर, सुहुमबायरेसु - सूक्ष्म और बादर में, पज्जतमपज्जत्त - पर्याप्त और अपर्याप्त, साहारणसरीरपत्तेयसरीरेसु - साधारण शरीर और प्रत्येक शरीर में, अंडय-पोयय-जराउयरखय-संसेइम - अंडज, पोतज, जरायुज, रसज संस्वेदिम, सम्मुच्छिमउब्भियउववाइएसु - सम्मूर्च्छिम, उद्भिज और औपपातिक आदि में, णरयतिरियदेवमाणुसेसु - नरक, तिर्यंच, देव और मनुष्य में,
."रोहिणीए" पाठ ज्ञानविमलसूरि वाली प्रति में नहीं है, परन्तु टीका में चरित्र दिया है। लगता है कि भूल से छूट गया है।
पर यहाँ"अबंभ सेविणो"-पाठ श्री ज्ञानविमलसूरि वाली प्रति में विशेष है। * "ताव णट्ठा" के स्थान पर 'ट्ठ कीत्ती' पाठ है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org