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असद्भाववादी का मत *************************************************************** • वह. भगवान् अंडे में ब्रह्मा के एक वर्ष तक निरन्तर रहता रहा और अन्त में उसने अपने ही संकल्प रूप ध्यान से उस अंडे के दो टुकड़े किये।
"ताभ्यां स सकलाभ्यां च, दिवं भूमिं च निर्ममे। मध्ये व्योम दिशश्चाष्टावपां स्थानां च शाश्वतम्॥"(मनु०१-१३)
- तत्पश्चात् भगवान् ने उस दो टुकड़ों में से ऊपर के टुकड़े से स्वर्ग और नीचे के टुकड़े से भूमि बनाई। मध्य भाग से आकाश और आठ दिशाएं तथा पानी का शाश्वत स्थान-समुद्र बनाया।
इसके बाद तत्त्वसृष्टि का वर्णन किया गया है।
ब्रह्मा ने स्वयंभू परमात्मा में से सत्-असत् मन का सृजन किया। मन से अहंकार.........ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो टुकड़े किये। एक का पुरुष और दूसरे आधे टुकड़े की स्त्री बनाई और स्त्री में विराट पुरुष का निर्माण किया। (१-३२)
सूत्रकृतांग श्रु० १ अ० १ उ० गाथा ७ में भी-"सयंभुणा कडे लोए" और गाथा ८ में - "एगे आह अंडकडे जगे" से कुदर्शनी का उल्लेख किया है। वह उपरोक्त मान्यता का निर्देश है। गाथा के उत्तरार्द्ध में कहा है कि -- असो तत्तमकासी य अयाणंतां मुसं वदे' - वे तत्त्व को नहीं समझते हैं और अज्ञानयुक्त ही मिथ्या भाषण करते हैं। ' सर्वप्रथम यह सिद्धान्त ही असत्य है कि असत् में से सत् उत्पन्न होता है । असत् में से सत् की उत्पत्ति हो ही नहीं सकती। असत् अपने-आप में सत् का कारण नहीं बन सकता। यदि मनुष्य पशु-पक्षी आदि अपने माता-पिता अथवा उत्पत्ति स्थान से उत्पन्न नहीं होकर आकाश से टपक पड़ते हों, तो असत् अथवा असद्भाव में से सत् या सद्भाव उत्पन्न हो सकता है। किन्तु यह बात ही असत्य है । असद्भाववादी किसी न किसी वस्तु का सद्भाव तो मानते ही हैं। कोई अन्धकार, गव्हर-छिद्र-आकाश और उसमें विभु को तप करते हुए मानते हैं। कोई पानी और अंडा मानते हैं। इस प्रकार सद्भाव मानकर भी असद्भाव-असत् बतलाना-वदतोव्याघात है-अपनी ही बात से आप असत्यवादी सिद्ध होना है।
अन्धकार और गव्हर था, तो आकाश और पृथ्वी भी थे ही। बिना आकाश और पृथ्वी के न अंधकार का सद्भाव हो सकता है, न गव्हर ही। पानी और अण्डा भी पृथ्वी पर ही रह सकते हैं। विभु भी बिनी पृथ्वी और आकाश के कहां रह सकता है ? विभु तप करता है, तो किसी की आराधना करता है। उसके आराध्य का अस्तित्व भी होना ही चाहिए। शरीर वाले विभु के माता-पिता भी होना चाहिए। बिना माता-पिता के विभु की उत्पत्ति कैसे हुई और बिना शरीर के तप भी कैसे हो सकता है? वह विभु सकर्मक ही हो सकता है। अकर्मक के न तो शरीर होता है और न तप की आवश्यकता होती है। अत: उपरोक्त मान्यता असत्य है। ... लोक शाश्वत है। अनादि है। इसका अभाव कभी नहीं हुआ। अतएव संसार को असद्भाव कहना अथवा अण्डे या स्वयंभू द्वारा निर्मित कहना-असत्य भाषण है।
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