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चोर को बन्दीगृह में होने वाले दुःख *************************************************************** सयाणि बहुयाणि पावियंता उरक्खोडी-दीण्ण-गाढपेल्लण-अट्ठिगसंभग्गसपंसुलीगा गलकालकलोहदंड-उर-उदर-वत्थि-परिपीलिया मत्थंत-हिययसंचुण्णियंगमंगा आणत्तीकिंकरहिं केई अविराहिय-वेरिएहिं जमपुरिस-सण्णिहेहिं पहया ते तत्थ मंदपुण्णा चडवेला-वज्झपट्टपाराई छिव-कस-लत्तवरत्त-णेत्तप्पहारसयतालि-यंगमंगा कि वणा लंबंत चम्मवणवेयणविमुहियमणा घणकोट्टिम-णियलजुयल संकोडियमोडिया य कीरति णिरुच्चारा * एया अण्णा य एवमाईओ वेयणाओ पावा पावेंति।
शब्दार्थ - किं ते - वे क्या हैं ? हडि - एक प्रकार का काष्ठ का बना हुआ बन्धन-खोडा, णिगड - लोहे का बन्धन-बेड़ी, वालरज्जुय - बालों की बनी हुई रस्सी, कुदंडग - लक्ड़ी का बना हुआ बन्धन विशेष जिसके अन्त में रस्सी बंधी रहती है, वरत्त - वरत्रा-चमड़े की रस्सी, लोहसंकल - लोहे की साँकल, हत्थंदुय - लोहे की बनी हुई हथकड़ी, बझपट्ट- चमड़े की पट्टी, दामक - पांव बांधने की रस्सी, णिक्कोडणेहिं - निष्कोटन-बन्धन विशेष, अण्णेहिं - अन्य प्रकार के, एवमाइएहिं - इसी प्रकार के, गोम्मिगभंडोवगरणेहिं - दण्ड देने के साधनों से, दुक्खसमुदीरणेहिं - दुःख दिया जाता है, संकोडमोडणाहिं - संकुचन और मोडन से, बझंति - बांधे या पीटे जाते हैं, मंदपुण्णा - मंद पुण्य वाले, संपुडकवाड - बन्द कपाट वाली कोठरी, लोहपंजर - लोहे के पिंजरे में, भूमिघर - तल घर, णिरोह - . निरोध-रोकना, कूव - कुएं, चारग - गुप्त घर, कीलग - खीले से, जूय - जूए में, चक्क - चक्र, विततबंधण - जंघा और मस्तक आदि का मर्दन किया जाना, खंभालण - खम्भे से बांधना, उद्धचलणबंधण - पाँवों को ऊपर बाँध कर लटकाना, विहम्मणाहिं - विविध प्रकार की वेदना से, विहेडयंता - पीड़ित किये जाते हैं, अवकोडगगाढउरसिरबद्ध - गर्दन झुका कर छाती से बांध दी जाती है, उद्धपूरिया - श्वासोच्छ्वास के भर जाने से छाती आदि का फूल जाना, फुरंतउरकडग -
आते फूल. जाना और छाती में कम्पन्न होना, मोडणा - अंगों का मोड़ा जाना, मेडणाहिं - मर्दन करके कष्ट देने से, बद्धा - बंधे हुए, णीससंता - दीर्घ श्वास लेते-हाँफते हुए, सीसावेढ - मस्तक को दृढ़ बन्धन से बाँधना, उरयावल - जंघाको मोड़ना या चीरना, चप्पडगसंधिबंधण - घुटनों और कुहनी आदि संधिस्थानों की चर्पटक से बांधना, तत्तसलागसूइया कोडणाणि - गर्म की हुई लौह शलाकाएं और सुइयाँ चुभाई जाती हैं, तच्छणविमाणणाणि - शरीर को छिलकर दुःख देना, खारकडुयतित्तणावण - लवणादि क्षार, कटु तथा तिक्त-मिर्च आदि मुख आदि में डाल कर, जायणा - यातना, कारणसयाणिसैकड़ों प्रकार की, बहुयाणि - बहुत-सी, पावियंता - पाते-भोगते हैं, उरक्खोडी - उनकी छाती पर काष्ठ की भारी खोड़ी-या घोड़ी रखी जाती है, दिण्णगाढपेल्लण - फिर इधर से उधर घसीटते हैं, अट्ठिगसंभग्गसपंसुलीगा - हड्डी पसली टूट जाती है, गलकालकलोहदंड - गले में फंस कर जीवन
* "असंचरणा" - पाठ श्री ज्ञानविमल सरि की वृत्ति वाली प्रति में है।
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