________________
चोर को दी जाती हुई भीषण यातनाएं -
१३५ ****
* **************************************** अर्गलायुक्त कारागृह में डालकर अवरुद्ध कर रखते हैं, चारगावहतसारा - बन्दी बना कर उनका सभी धन ले लिया जाता है, सयणविप्पमुक्का - स्वजनों से छोड़े-त्यागे हुए, मित्तजणणिरक्खिया - मित्रजनों से भी त्यागे हुए, णिरासा - निराश, बहुजणधिक्कारसहलजाइया - बहुत-से मनुष्यों से धिक्कार के शब्दों से जो लज्जित हैं, अलज्जा - लज्जा-रहित, अणुबद्धखुहा - भूख से निरन्तर पीड़ित, पारद्धा - पीड़ित, सी-उण्ह-तण्हवेयण - शीत, उष्ण, तृषादि वेदना से, दुग्घट्टघट्टिया - अत्यन्त दु:खी हैं जो, विवण्णमुह - विवर्ण-मुख-जिनके मुंह का वर्ण बिगड़ा हुआ है, विच्छविया - कान्तिहीन-निस्तेज, विहल - निष्फल, मइल - म्लान, दुब्बला - दुर्बल, किलंता - क्लेशित, कासंता - खांसते हुए, वाहिया - व्याधि पीड़ित, आमाभिभुयगत्ता - आमाशय विषाक्त हो कर पीड़ित, परूढ़ - बढ़ जाते हैं, णहकेसमंसुरोमा - नख, केस और दाढ़ी मूंछ के बाल, छगमुत्तम्मि - विष्ठा और मूत्र में, णियगम्मि - निकल जाने से, खुत्ता - लिप्त हैं, तत्थेव - वहीं, मया - मर जाते हैं, अकामगा - अनिच्छापूर्वक, बंधिऊण - बांध कर, पाएसु - पाँव कों, कड्डिया - घसीट कर निकालते, खाइयाए - खाई में, छूढाडाल देते हैं, तत्थय - वहाँ या उसे, वगसुणगसियालकोलमज्जार - भेडिया, कुत्ता, गीदड़, सूअर, बिल्ली, चंडसंदंसग-तुंडपक्खिगण- तीक्ष्ण चोंच वाले पक्षीगण, विविहमुह-सयल - अनेक प्रकार के सैकड़ों मुंहों से, विलुतगत्ता - विलुप्त गात्र-अंग-प्रत्यंग खाये जाकर नष्ट हो गये, कयविहंगा - खण्डित किये हुए अंग, किमिणा - कृमि-कीड़ों से, कुहिय देहा - सड़े हुए शरीर से, अणिढवयणेहि - अनिष्ट वचनों से, सप्पमाणा- शय्यमान-गाली आदि से, सुटुकयं - अच्छा किया, जं - यह, मउत्ति - मर गया, पावोपापी, तुटेणं - संतुष्ट हुए, जणेण - लोग, हम्ममाणा - मारते हुए, लज्जावणगाहोंति - लज्जित होते रहते हैं, सयणस्स - उनके स्वजन, दीहकालं- दीर्घ काल तक।
भावार्थ - वधस्थान पर ले जा कर वधिकगण किसी चोर के अंगोपांग काट देते हैं, किसी को वृक्ष की शाखा से पांव बांध कर उल्टा लटका देते हैं, तब वह चोर, करुणाजनक विलाप करता है। किसी के दोनों हाथ और दोनों पांव-ये चारों अंग दृढ़ता से बांध कर पर्वत के शिखर पर से नीचे गिरा देते हैं। इतने ऊपर से गिराये हए वे नकीले एवं विषम पत्थरों से टकराते-कटाते औ और असह्य वेदना सहते हुए मर जाते हैं। किन्हीं को भूमि पर डाल कर उन पर हाथी चलाये जाते हैं और उन्हें कुचल कर मार देते हैं। किन्हीं पापी चोरों के अंगों को कुण्ठित कुठार (वह कुल्हाडा जिसकी धार तीक्ष्ण न हों) से काट कर अठारह टुकड़े किये जाते हैं। किसी के कान, नाक और ओष्ठ काट लेते हैं। किसी की आँखें निकाल लेते हैं, तो किसी के दांत तोड़ देते हैं और किसी के अंडकोष निकाल लेते हैं। किसी की जीभ काट डालते हैं। किसी के कान काट लेते हैं और किसी का मस्तक ही काट लेते हैं। किसी का वधस्थल पर ले जाते ही तलवार से सिर काट देते हैं। किसी के हाथ-पांव काट कर देश निकाला दे देते हैं और किसी चोर को जीवनपर्यन्त बन्दी बनाये रखते हैं। दूसरों के धन का हरण करने वाले चोरों को कारागह में बन्दी बना कर द्वार बन्द करके रखते हैं। उनका धन राज्यकोष में ले लिया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org