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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० ४. .
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लम्बी मालाओं से उनका वक्ष स्थल सुशोभित रहता था, अट्ठसयविभत्तलक्खणपसत्थसुंदरविराइयंगमंगाविभिन्न एक सौ आठ शुभ लक्षणों से उनके अंगोपांग सुशोभित थे, मत्तगयरिदललियविक्कमविलसियगई - वे मस्त गजेन्द्र के समान ललित विक्रम एवं विलासयुक्त गति करते-चलते थे, कडिसुत्तगणीलपीयकोसिज्जवाससा - नीले-बलदेव के और पीले-वासुदेव के रेशमी वस्त्र पर करधनी शोभित हो रही थी, पवरदित्ततेया - वे उत्कृष्ट एवं दीप्त तेज वाले थे, सारयणवत्थणियमहुरणिद्धघोसा - शरद काल के नवीन मेघ की गर्जना के समान उनका स्वर मधुर एवं गम्भीर था. णरसीहा- वे मनुष्यों में सिंह के समान थे, सीहविक्कमगई - सिंह के समान पराक्रमशाली थे,. अत्यमियपवररायसीहा - जिन्होंने बड़े-बड़े रास-सिंहों को परास्त कर तेजच्युत कर दिया था, सोमा - वे सौम्य थे, बारवईपुण्णचंदा - वे द्वारका नगरी के लिए पूर्ण चन्द्र के समान थे, पुव्यंकयतवप्पभावापूर्वभव में की हुई विशिष्ट तपस्या के प्रभाव से वे प्रभावित थे, णिविट्ठसंचियसुहा - पूर्वभव में संचित किये हुए महान् सुखों के वे भोक्ता थे, अणेगवाससयमाउवंता- वे अनेक सैकड़ों वर्षों की आयु वाले थे, भग्जाहि - भार्याओं के साथ, जणवयप्पहाणाहिं - उत्तम देश एवं उत्तम कुल में उत्पन्न, लालियंताविलास करते हुए, अउलसद्दफरिसरसरूवगंधे अणुहवित्ता - अनुपम शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श का अनुभव करते हुए, ते - वे, उवणमंतिमरणधम्म - मृत्यु धर्म को प्राप्त हुए, अवितत्ताकामाणं - ... कामभोगों से अतृप्त रहे।
भावार्थ - वे अजेय थे-उन्हें जीतने वाला कोई नहीं था। उनके रथ भी अजेय थे। बलदेव हल, मूसल और बाणों के धारक थे और कृष्ण शंख, चक्र, गदा और शक्ति तथा नन्दक खड्ग धारण करते थे। श्रीकृष्ण के वक्ष स्थल पर कौस्तुभमणि और मस्तक पर मुकुट शोभित हो रहा था। कुण्डल के उद्योत से उनका मुख प्रकाशित हो रहा था। उनके नेत्र विकसित श्वेत-कमल के समान थे। गले में : एकावली माला शोभित हो रही थी। हृदय पर श्रीवत्स का शुभ लक्षण था। उनका यश उज्ज्वल था और चतुर्दिक व्याप्त था। सभी ऋतुओं के सुगन्धित पुष्पों से गुंथी हुई लम्बी वनमालाएँ उनके वक्ष पर लटक रही थी। पुरुष सम्बन्धी १०८ शुभ लक्षणों से उनके अंग सुशोभित थे। वे मस्तक गजेन्द्र के समान ललित विक्रम एवं विलासपूर्वक गति करते थे। बलदेव नीले वर्ण के और श्रीकृष्ण पीले वर्ण के सुन्दर रेशमी वस्त्र धारण करते और उसके ऊपर करधनी शोभायमान होती थी। उनका तेज प्रखर था। उनका कण्ठस्वर शरदकाल के नूतन मेघ की गर्जना के समान गम्भीर और साथ ही मृदु था। मनुष्यों में वे सिंह के समान-नरसिंह थे। उनका पराक्रम सिंह के समान था। उन्होंने बड़े-बड़े नरसिंहों-नरेन्द्रों के प्रभाव को नष्ट कर दिया था अथवा बड़े-बड़े नरेशों का ही विनाश कर दिया था। वे सौम्य थे। द्वारिका नगरी को आनन्दित करने वाले पूर्ण चन्द्रमा के तुल्य थे। पूर्वभव में किये हुए तप के प्रभाव से वे युक्त. और पूर्व के संचित महान् सुखों को भोगने वाले थे। उनकी आयु सैकड़ों वर्षों की थी। उत्तम देश और उत्तम कुलों में उत्पन्न रमणियों के साथ विलास करते हुए वे अनुपम शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श का
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