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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ०४ ****************************************************************
उद्योग करते हैं न व्यवसाय। उनका जीवन कल्पवृक्षों के सहारे चलता है। वे प्रकृति से शान्त, प्रशस्त लेश्या वाले, क्रोधादि की अल्पता वाले और संग्रह-विग्रह से रहित सुखोपभोग में जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं। किसी प्रकार का उद्योग और व्यवसाय रूपी कर्म नहीं करके, जीवन भर आमोद-प्रमोद में रहने के कारण इन्हें 'अकर्मभूमिज' कहते हैं। अकर्मभूमियाँ तीस हैं। हमारे भरत क्षेत्र और एरवतक्षेत्र में भी अवसर्पिणी काल के तीन आरे में अकर्मभूमिज (देवकुरु उत्तरकुरु क्षेत्र जैसे) युगलिक मनुष्य होते हैं। तीसरे आरे के उत्तर विभाग में अकर्मभूमि में परिवर्तन आकर कर्मभूमि का प्रभाव बढ़ने लगता है। उपरोक्त अकर्मभूमिज मनुष्यों की शारीरिक ऋद्धि और कामभोग का वर्णन इस. सूत्र में हुआ है।
लक्खणवंजणगुणोववेया पसत्थबत्तीसलक्खणधरा हंसस्सरा कुंचस्सरा दुंदुभिस्सरा सीहस्सरा उज्जस्सरामेहस्सरा सुस्सरा सुस्सरणिग्घोसा वन्जरिसहणारायसंघयणा समचउरंससंठाणसंठिया छायाउज्जोवियंगमंगा पसत्थच्छवी णिरातंका कंकग्गहणी कवोयपरिणामा सउणिपोसपिटुंतरोरुपरिणया पउमुप्पलसरिसगंधुस्साससुरभिवयणा अणुलोमवाउवेगा अवदायणिद्धकाला विग्गहियउण्णयकुच्छीअमयरसफलाहारा तिगाउयसमूसिया तिपलिओवमट्ठिइया तिण्णि य पलिओवमाइं परमाउं पालइना ते वि उवणंमंति मरणधम्मं अवितत्ता कामाणं।
शब्दार्थ - लक्खणवंजणगुणोववेया - लक्षण, व्यंजन और गुणों से युक्त, पसत्थबत्तीसलक्खणधरा - प्रशस्त बत्तीस लक्षणों के धारक, हंसस्सरा- हंस के समान स्वर, कुंचस्सरा - क्रोंच के समान स्वर, दुंदुभिस्सरा - दुंदुभी जैसा स्वर, सीहस्सरा - सिंह के समान स्वर, उज्जस्सरा - ऋजुस्वर, मेहस्सरा - मेघ के समान स्वर, सुस्सरा - सुस्वर, सुस्सर-णिग्घोसा - सुन्दर निर्घोष स्वर वाले, वज्जरिसहणारायसंघयणा - वज्र-ऋषभ-नाराच संहनन वाले, समचउरंससंठाणसंठिया - समचतुरस्र संस्थान से युक्त, छायाउज्जोवियंगमंगा - उनके अंगोपांग कान्ति से युक्त होते हैं, पसत्थच्छवी - शरीर की प्रशस्त शोभावाले, णिरातंका - रोग के आतंक से रहित, कंकग्गहणी - उनका मलद्वार, कंक पक्षी की गुदा के समान नीरोग होता है अथवा कंकं पक्षी के समान स्वल्प आहार से संतुष्ट होने वाले होते हैं ।
__ कवोयपरिणामा - कपोत के समान आहार को शीघ्र पचाने वाले, सउणिपोस - पक्षी के समान निर्लेप मलद्वार वाले, पिटुंतरोरुपरिणया - उनकी पीठ, पार्श्व और उदर सुन्दर और प्रमाणं युक्त है, पउमुप्पलसरिसगंधुस्साससुरभिवयणा - उनका श्वासोच्छ्वास पद्म एवं उत्पल कमल के समान
* "कंकस्य पक्षिविशेषस्येवआहारग्रहणं येषां ते अल्पाहारेण संतुष्ठा इत्यर्थ" - श्री ज्ञानविमलसूरि वृत्ति।
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