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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ०३ ********* ************************************* * *** पापी चोर स्वजन-परिजनों से रहित-अकेले होते हैं। उनका कोई मित्र नहीं होता। उनके मन में यह आशा ही नहीं रहती कि उन्हें कोई बचाने का प्रयत्न करेगा। जनता उन्हें धिक्कारती रहती है। जनधिक्कार के शब्द उन्हें लज्जित करते हैं, किन्तु वे निर्लज होते हैं। वे भूख से निरन्तर पीड़ित रहते हैं। . शीत, ताप, प्यास आदि से वे दुःखित रहते हैं। उनका मुंह विकृत-फीका, कान्ति-हीन और मलीन हो जाता है। उनकी कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती। वे दुर्बल एवं क्लेशित रहते हैं। उन्हें खांसी आदि रोग हो जाते हैं। उनका आमाशय विकृत होकर अपक्व रस से शरीर विषाक्त हो जाता है। उनके नाखून, केश, डाढ़ी-मूंछ के बाल बढ़ जाते हैं। वे कारागृह में अपनी ही विष्ठा और मूत्र में लिप्त हो जाते हैं -
और जीवन की इच्छा रखते हुए भी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इसके बाद उनके पांवों में रस्सी बांध कर घसीटते हुएं लें जा कर उन्हें किसी खाई में डाल देते हैं। वहाँ उनके उस मृत शरीर को भेड़िये, कुत्ते, सियार, बिल्ले. आदि पशु नोच-नोच कर खाते हैं। गिद्धादि अनेक प्रकार के पक्षी अपनी विविध प्रकार की तीखी चोंचों से नोच खा कर अंग-उपांग नष्ट एवं विलुप्त कर देते हैं। उनके शरीर के कई टकडे कर देते हैं। किसी का शरीर सड जाता है और उसमें कीडे पड जाते हैं। जो मनष्य उन्हें देखता है, वही उनकी निन्दा करता और गालियाँ देता है। कई लोग कहते हैं कि इस पापी को इतना कठोर दण्ड दिया-यह अच्छा ही किया और यह मर गया-यह भी अच्छा हुआ। उन्हें दण्डित देख कर संतुष्ट हुए लोग भी उन्हें मारते हैं। उनके मरने के बाद भी उनके सम्बन्धीजन, उनके दुष्कृत्य के कारण चिरकाल तक लज्जित होते रहते हैं। - विवेचन - इस सूत्र में चोरी करने वाले अपराधी को दिये जाने वाले उग्रतम दण्ड का वर्णन . किया गया है। इसमें खास-खास दण्डों का ही उल्लेख है। हाथी के पैरों से कुचलवा कर मारने के अतिरिक्त सिंह के पिंजरे में बन्ध करके मारने, भयंकर विषधर से डसवाकर मारने आदि रूप के दण्डदान तो मुस्लिम बादशाहों के समय तक होता था। गर्दन पर कुल्हाड़ी चला कर, लकड़े के समान काटने और एक ऊंचे खंभे पर बांध कर, नीचे आग जला कर उसकी आँच में धीमे-धीमे तपा करभुनते हुए, अत्यन्त कष्टपूर्वक मारने का दण्ड, इंगलैण्ड में दिया जाता था-ऐसा उल्लेख भी पढ़ने में आया है और यह दण्ड केथोलिक और प्रोटेस्टंट के साम्प्रदायिक पक्षपात से (मान्यता प्रचारित करने के अपराध में) दिया जाता था।
अट्ठारसखंडिया - चोर के शरीर के अठारह खण्ड करना। यथा - २ कान, २ नाक, २ आँखें, २ ओष्ठ, २ हाथ, २ पाँव, १ जीभ, १ गर्दन, १ कंठ, १ पीठ, १ वक्षस्थल और १ गुह्येन्द्रिय।
पाप और दुर्गति की परम्परा मया संता पुणो परलोग-समावण्णा णरए गच्छंति णिरभिरामे अंगारपलित्तककप्प-अच्चत्थ-सीयवेयण-अस्साउदिण्ण-सययदुक्ख-सय-समभिहुए, तओ
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