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चक्रवर्ती नरेन्द्र के विशेषण
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थिमियमेयणिज्जं - किसी भी प्रकार के भय से रहित होकर प्रजाजन जहाँ सुखपूर्वक रहते हैं। जिनके प्रभाव एवं सुशासन से प्रजा निर्भय रहती है।..
चक्रवर्ती नरेन्द्र के विशेषण
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णरसीहा णरवई गरिंदा णरवसहा मरुयवसहकप्पा अब्भहियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणा सोमा रायवंसतिलगा ।
शब्दार्थ - णरसीहा - नरसिंह- मनुष्यों में सिंह के समान, णरवई - नरपति- मनुष्यों के स्वामी, णरिंदा - नरेन्द्र, णरवसहा नरवृषभ, मरुयवसहकप्पा मरुधर वृषभ - कल्प, अब्भहियं अत्यधिक, रायतेयलच्छिए - राज्यलक्ष्मी के प्रकाश से, दिप्पमाणा - देदीप्यमान, सोमा - सौम्य, रायवंसतिलगा राज्यवंश के तिलकं । . -
भावार्थ - चक्रवर्ती नरेश मनुष्यों में सिंह के समान शौर्यसम्पन्न हैं, मनुष्यों के स्वामी हैं, मनुष्यों में इन्द्र के समान अधिपति हैं। शकट - धुरा को धारण करके पार पहुँचाने वाले वृषभ (बैल) के समान राज्यधुरा को धारण कर कुशलतापूर्वक संचालन करने वाले नरवृषभ हैं। मरुधर वृषभ-कल्प - मारवाड़ के धोरी वृषभ, अपनी विशालता, शक्ति सम्पन्नता एवं श्रेष्ठता में सर्वोपरि होते हैं और अत्यधिक भार को वहन कर सकते हैं, उसी प्रकार चक्रवर्ती सम्राट सम्पूर्ण छह खण्ड के राज्यभार को आदर्श रूप से वहन कर संचालन करने वाले हैं। वे राज्य रूपी लक्ष्मी राज्यश्री के तेज से देदीप्यमान हैं, सौम्य हैं और राजवंश में तिलक के समान सिरोभूषणरूप हैं।
विवेचन - उपरोक्त शब्दों में चक्रवर्ती महाराजाधिराज के गुणसम्पन्न विशेषण बतलाये गये हैं । चक्रवर्ती सम्राट, केवल वंश परम्परा के प्राप्त राज्याधिकार से ही नहीं बन जाते, न केवल सैन्यबल या जनमत से चुन कर आये हुए राष्ट्रपति होते हैं। वे अपनी विशिष्ट प्रकार की शक्ति, सामर्थ्य एवं सम्पूर्ण योग्यता से चक्रवर्ती होते हैं। उनकी उत्पत्ति भी उत्तम राजवंश में ही होती है । 'जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति': सूत्र में भरत चक्रवर्ती के अधिकार में ये विशेषण भी हैं -
" समरे अपराजिए परमविक्कमगुणे अमरवइसमाणसरीररुवे अवई ।" युद्ध में
शत्रु से पराजित नहीं होने वाले अपराजित - विजयी । परम विक्रम - पराक्रम गुणयुक्त, देवेन्द्र के समान शारीरिक रूप सम्पन्न मनुष्याधिपति ।
औपपातिक सूत्र में कूणिक राजा के वर्णन में ये विशेषण भी हैं
"दयपत्ते, सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, मणुसिदे, जणवयपिया,
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