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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०२ ***
******************************************** "ब्रह्मात्मभूः सुरज्येष्ठः, परमेष्ठी पितामहः। हिरण्यगर्भो लोकेशः स्वयंभूश्चतुराननः॥"(१-१६) अंड सृष्टि का स्वरूप"छान्दोग्योपनिषद" (३-१९) में इस प्रकार बताया है"असदेवेदमग्र आसीत्" - सृष्टि के पूर्व प्रलयकाल में यह जगत् असत्-अव्यक्त नाम रूप था। "तत्सदासीत्" - वह असत् जगत् सत्-नाम रूप कार्य के अभिमुख हुआ। "तत्सम भवत्" - अंकुरभूत बीज के समान क्रम से कुछ स्थूल बना। "तदाण्डं निरवर्तत" - बाद में वह अंडे के रूप में बना। "तत्संवत्सरस्य मात्रामशयत" - वह एक वर्ष पर्यन्त अंड रूप ही रहा। "तनिरभिद्यत" - उसके बाद वह अण्डा फूट गया।
"ते आण्डकपाले रजतं च सुवर्णञ्चा भवताम्" - अण्डे का एक कपाल चांदी का और एक . सोने का बना।
"तघद्र रजत सेयं पृथ्वी" - चांदी का कपाल पृथ्वी बनी। "यत्सुवर्ण सा द्यौः" - सोने का कपाल ऊर्ध्वलोक बना। "यजरायु ते पर्वता" - जो गर्भ का वेष्टन था उसके पर्वत बने। "यदुल्वं स मेघो नीहारः" - जो गर्भ का सूक्ष्म परिवेष्टन था, वह मेघ और तुषार बना। "या धमनयः ता नद्यः".- जो धमनियाँ थीं, वे नदियाँ बन गई। "यद्धास्तेयमुदकम् स समुद्रः" - जो मूत्राशय का पानी था, वह समुद्र बना। "अथ यत्तदजायत सोऽसावादित्यः" - फिर अंडे में से जो गर्भरूप में उत्पन्न हुआ वह सूर्य हुआ।
"तं जायमानघोषा उलूलवोऽनूद निष्ठन्तसर्वाणि च भूतानि"-सूर्य के जन्म के समय महा उद्घोष हुए और सभी प्राणी उत्पन्न हुए।
"सर्वे च कामारतस्त्रात्तस्योदयं" - उन प्राणियों को विभिन्न इच्छाएं उत्पन्न होने लगी।
अंडे से उत्पन्न सृष्टि का उपरोक्त वर्णन "छान्दोग्योपनिषद" अध्ययन ३ खंड १९ में लिखा है। यह अंडसृष्टि स्वयंभूकृत है, ऐसा 'मनुस्मृति' में लिखा है। यथा -
"तदण्डमभवढेमं, सहस्रांशुसमप्रभम्। तस्मिंजज्ञे स्वंय ब्रह्मा, सर्वलोकपितामहः॥"(१-९)
- स्वयंभू के संकल्प से वह बीज सूर्य के समान अतीव उज्वल प्रभा वाला सोने का अंडा बना। तदनन्तर उस अंडे में भगवान् स्वयंभू योग-शक्ति से पूर्वधृत प्रकृतिमय सूक्ष्म शरीर छोड़कर सर्वलोक पितामह ब्रह्मा के रूप में उत्पन्न हुआ।
"तस्मिन्नण्डे स भगवानुषित्वा परिवत्सरम्। स्वयमेवात्मनो ध्यानात्तदण्डमकरोद् द्विधा॥"
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