________________
- लोभजन्य अनर्थकारी झूठ
८७
*****
*
*
**************************************
हैं। उनके मन में डाह उत्पन्न होती है। इसलिए वे उन पर झूठे दोषारोपण करते हुए मृषावाद का पाप करते हैं।
रायदुदु - राजदुष्ट-राज्य एवं राजा के लिए अहितकारी, अवांछनीय, जनहित, न्याय, नीति, शांति एवं सुरक्षा को क्षति पहुंचाने वाला। जनता में पतन के कारण ऐसी पापी प्रवृत्ति बढ़ाने वाला। भद्दगे - भद्रक-सरल स्वभावी, स्वच्छहृदयी, कूड़-कपट-छल-प्रपंचादि रहित। सीधे-सादे मनुष्य।
लोभजन्य अनर्थकारी झूठ --णिक्खेवे अवहरंति परस्स अथम्मि गढियगिद्धा अभिजुंजंति य परं असंतएहिं लुद्धा य करेंति कूडसक्खित्तणं असच्चा अत्थालियं च कण्णालियं च भोमालियं च तह गवालियं च गरुयं भणंति अहरगइगमणं अण्णं पि य जाइरूवकूलसीलपच्चयं मायाणिउणं चवलपिसुणं परमट्ठभेयगमसगं विद्देसमणत्थकारगं पावकम्ममूलं दुद्दिटुं दुस्सुयं अमुणियं णिल्लजं लोयगरहणिजं वहबंधपरिकिलेसबहुलं जरामरणदुक्खसोयणिम्मं असुद्धपरिणामसंकिलिटुं भणंति।
शब्दार्थ - णिक्खेवे - निक्षेपक-धरोहर रखने वाला, अवहरंति - हरण करते हैं, परस्स - . दूसरों को, अत्यम्मि - अर्थ-धन में, गढियगिद्धा - अत्यन्त लुब्ध, अभिजुंजंति - अभियोग-आरोप लगाते हैं, असंतएहिं - मिथ्या दोषों का, लुद्धा - लुब्ध-आसक्त, करेंति - करते हैं, कूडसक्खित्तणं - झूठी साक्षी, असच्चा - असत्य, अत्थालियं - अर्थालीक-धन के लिए झूठ, कण्णालियं - कन्यालीक-कन्या सम्बन्धी झूठ, भोमालियं - भूमि सम्बन्धी मृषा, गवालियं - गाय-भैंसादि सम्बन्धी असत्य, गरुयं - बहुत भारी-महान् अनर्थकारी, भणंति - कहते हैं, अहरगइगमणं - अधोगति की ओर गति कराने वाला, अण्णं - अन्य भी, जाइरूवकूलसील - जाति रूप, कुल, शील, पच्चयं - प्रत्ययक-संबंधी, मायाणिउणं - माया में निपुण अथवा माया के कारम, चवल - चंचल, पिसुणं - पिशुन-चुगलखोर, परमट्ठभेयगमसगं - परमार्थ का भेदन करने वाला असत्य, विद्देस - विद्वेष, मणत्थकारगं - अनर्थकारी, पावकम्ममूलं - पापकर्मों का मूल, दुटुिं - दुर्दृष्ट-दुष्ट दृष्टि वाला, दुस्सुयं - दुःश्रुत-नहीं सुनने योग्य, अमुणियं - अमुणित-अज्ञात, णिल्लजं - निर्लज्ज, लोयगरहणिज्जे - लोक में निन्दित, वहबंध - वध और बन्धन, परिकिलेस - क्लेश, बहुलं - अधिकता से, जरामरणदुक्ख - बुढ़ापा और मृत्यु के दुःख, सोयणिम्मं - शोक का कारण, असुद्धपरिणाम - बुरे भाव, संकिलिटुं - क्लेश का कारण, भणंति- बोलते हैं।
भावार्थ - झूठे लोग दूसरों की धरोहर (धन) दबाने के लिए असत्य भाषण करते हैं और दूसरों 0 'मायाणिगुण' पाठ भी है, जिसका अर्थ किया है-निन्दारूप माया युक्त होने के कारण निर्गुण-स्व-पर-हित वर्जित।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org