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पाप का परामर्श देने वाले *** ********** **********************************************
विवेचन - जिन मनुष्यों की पाप में रुचि है, जिनके विचार पापमय रहा करते हैं, वे दूसरों को पाप की शिक्षा देने, पाप की विधि बताने और पाप में जोड़ने का प्रयत्न करते रहते हैं। कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है कि बिना किसी स्वार्थ के भी पर-पीड़न की प्रेरणा करते रहते हैं। वे विवेकविकल मनुष्य, अनर्थदण्ड से अपना और दूसरों का अहित करते हैं। बहुत-से लोगों की आजीविका ही ऐसे विशेष प्रकार के पापों से चलती है और बहुत-लोग तो पाप-रुचि के कारण ही पापोत्तेजक परामर्श देते रहते हैं। विवेक की कमी के चलते कई आर्य एवं अहिंसक-परम्परा में उत्पन्न व्यक्ति भी हिंसाकारी वचन बोलते हैं। अनीति एवं दुराचार में प्रवृत्त होने की विधि बतलाते हैं और अकारण ही स्वयं पाप में पड़ते हैं तथा दूसरों को भी पाप में पटकते हैं।
सच्चाई पि - यदि वह पापी-परामर्श सत्य हो, तो भी वह मृषावादयुक्त है। वैसे परामर्श से इच्छित काम बनता हो, तो भी पापयुक्त-हिंसा एवं दुराचार वाला होने के कारण बोलने योग्य नहीं होता, फिर भी अज्ञानी जन बोलते हैं। ____जंताई विसाई मूलकम्मं आहेवण-आविंधण-आभिओग-मंतोसहिप्पओगे चोरियपरदारगमण-बहुपावकम्मकरणं उक्खंधे गामघाइयाओ वणदहण-तलागभेयणाणि बुद्धिविसविणासणाणि वसीकरणमाइयाई भय-मरण-किलेसदोस जणणाणि भावबहुसंकिलिट्ठमलिणाणि भूयघाओवघाइयाई सच्चाई वि ताइं हिंसगाई वयणाई उदाहरंति।
शब्दार्थ - जंताई - उच्चाटनादि करने वाले यंत्रों-मन्त्रों अथवा जलयंत्र आदि यंत्रों-कलों, विसाई - विष का, मूलकम्मं - जड़ी-बूंटी के प्रयोग से गर्भपात करने का, आहेवण - आक्षेपण-क्षोभ उत्पन्न करने के लिए, आविंधण - आवर्धन-मंत्र प्रयोग से शत्रुता बढ़ाने, आभिओग - आभियोग्यवशीकरण प्रयोग का, मंतोसहिप्पओगे - मंत्र और औषधी का प्रयोग करने का, चोरिय-परदारगमण - चोरी और पर-स्त्री गमन, बहुपावकम्मकरणं - बहुत ही पापकृत्य करने का, उक्खंधे - छलपूर्वक विपक्षी सेना-का विनाश करने, गामघाइयाओ - गांव के घातक को, वणदहण - वन को जलाने, तलागभेयणाणि - तालाब को तोड़ने-फोड़ने विषयक, बुद्धिविसविणासणाणि - बुद्धि का विनाश करने अथवा विक्षिप्त बनाने वाले विषयों का, वसीकरणमाइयाई - वशीकरण करने वाले मंत्रों का, भय-मरण-किलेस-दोसजणणाणि - भय, मृत्यु, क्लेश और दुःख उत्पन्न करने वाले, भावबहुसंकिलिट्ठमलिणाणि - अत्यन्त संक्लिष्ट होने के कारण मलिन भाव, भूयघाओवघाइयाइं - प्राण, भूत, जीव और सत्व का घात-उपघात करने वाले, सच्चाई - सत्य भी, ताई - उन, हिंसगाई - हिंसाकारी, वयणाई - वचनों को, उदाहरंति - कहते हैं।
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