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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०२ *************************************************************** विश्राम-रहित-निरन्तर-वेदना-दुःख भोग, दीहकालं लम्बे समय तक, बहुदुक्खं - बहुत दुःखों से, संकडंपरिपूर्ण, णरयतिरिजयोणिं - नरक और तिर्यंच योनि को, तेण - उस, अलिएण - मृषावाद से, समणुबद्धा- बंधे हुए, आइद्धा- उस कर्म से युक्त, पुणब्भवंधयारे - पुनर्भवरूपी अन्धकार में, भमंतिभम्रण करते रहते हैं, भीमे - भयंकर, दुग्गइवसहिमुवगया - दुर्गति में निवास करते हुए, ते - वे, दीसंतिदिखाई देते हैं, इह - इस लोक में, दुग्गया - दुर्गत-बुरी अवस्था में, दुरंता - उनके दुःखों का कठिनाई से अन्य होता है या नहीं होता, परवस्सा - वे पराधीन रहते हैं, अत्थभोग-परिवज्जिया- अर्थभोग वर्जितधन और उससे प्राप्त भोगों से वंचित रहते हैं, असुहिया - सुख से रहित, पुडियच्छवि - बिवाई, दाद आदि रोगों से जिनकी चमड़ी छिद-भिद कर विकृत हो गई है, बीभच्छ - बीभत्सं-भयानक, विवण्णाबुरे वर्ण-रूप वाले, खरफरुस विरत्तज्झामझूसिरा - कर्कश स्पर्श वाले दुर्थ्यांनी मंलिन एवं निःसार शरीर वाले, णिच्छाया - शोभा से रहित, लल्लविफलवाया - अव्यक्त एवं निष्फल वचन वाले, असक्कयमसक्कया - शरीर के संस्कार तथा सत्कार से रहित-वंचित, अगंधा - सुगन्ध रहित-दुर्गन्धयुक्त, अचेयणा - सुचेतना-सद्बुद्धि से रहित, दुभगा - दुर्भागी, अकंता - अकान्त-अनिच्छनीय, काकस्सराकौए के समान अप्रिय स्वर वाले, हिण्णभिण्णघोसा - हीन-अधम एवं भिन्न-अटकती हुई-टूटती हुई बाली वाले, विहिंसा - दूसरों के द्वारा मारे-पीटे जाने वाले, जडबहिरंधया - मूर्ख, बहरे और अन्धे, मम्मणा - अस्पष्ट बोली है जिनकी, अकंतविकयकरणा - अशोभनीय एवं विकृत इन्द्रियों वाले, णीया - नीच, णीयजणणिसेविणो - नीचे लोगों की संगति वाले, लोयगरहणिज्जा - लोगों द्वारा निन्दित, भिच्चा - भृत्य-नौकर, असरिसजणस्सपेस्सा - अपने से नीच व्यक्ति के नौकर-गुलाम, दुम्मेहा - दुर्बुद्धि वाले, लोयवेय-अज्झप्पसमयसुइवजिया - लोकाभिमतं शास्त्र, वेद शास्त्र, आध्यात्मिक शास्त्र तथा सिद्धान्तों से वर्जित, णरा - नर, धम्मबुद्धिवियला - धर्म बुद्धि से विकल, अलिएण - अलिकवाद रूपी अग्नि से, तेण - उस, पडझमाणा - जलते हुए, असंतएण - अशान्त, अवमाणणअपमान, पिट्टिमंसाहिक्खेव - पृष्ठिमांस-परोक्ष में दोषारोपण करना, अधिक्षेप धिक्कारवाद का पात्र, पिसुणभेयण - चुगलखोरों द्वारा स्नेह सम्बन्ध तुड़वाना, गुरुबंधवसयणमित्तवक्खारणाइयाइं - गुरुजन, बान्धवजन-स्वजन और मित्रादि द्वारा दुर्वचनों से अपमानित होते, अब्भक्खाणाई - दोषारोपण करते, बहुविहाई - अनेक प्रकार के, पावेंति - प्राप्त करते हैं, अमणोरमाइं - अत्यन्त अरुचिकर, हिययमणदूमगाई - हृदय और मन को दुःखकारी, जावजीवं - जीवन पर्यन्त, दुरुद्धराई - कठिनता से उद्धार होने योग्य, अणिट्ठखरफरुसवयण - अत्यन्त अनिष्ट और कठोर वचनों से, तज्जण - तर्जना से, णिभच्छण - निर्भत्सना-डांट फटकार से, दीणवयणविमणा - दीनतायुक्त मुख और दुःखित मन, कुभोयणा - कुभोजन, कुवाससा - कुवस्त्र, कुवसहिसु - बुरे स्थान पर रहना, किलिस्संता - क्लेशित होते, णेव सुहं - शरीर सुख नहीं, णुव्वुई - मानसिक शांति, उवलभंति - प्राप्त होते अच्चंत - अत्यन्त, विउल - विपुल, दुक्खसयसंपउत्ता - सैकड़ों दुःखों से संतप्त बने रहते हैं।
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