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अदत्तादान नामक तीसरा अधर्मद्वार
अदत्त का परिचय जंबू! तइयं च अदिण्णादाणं हरदह-मरणभय-कलुस-तासण-परसंतिग-अभेजलोभमूलं कालविसमसंसियं अहोऽच्छिण्ण-तण्हपत्थाण-पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणजं छिद्दमंतर-विहुर-वसण-मग्गण-उस्सव-मत्त-प्पमत्त पसुत्त-वंचणक्खिवणघायणपरं अणिहुयपरिणामं तक्कर-जणबहुमयं अकलुणं रायपुरिस-रक्खियं सया साहु-गरहणिजं पियजण-मित्तजण-भेय-विविप्पइकारगं रागदोसबहुलं पुणो य उप्पूरसमरसंगामडमर-कलिकलहवेहकरणं दुग्गइविणिवायवड्डणं-भवपुणब्भवकरं चिरपरिचिय-मणुगयं दुरंतं। तइयं अहम्मदारं।
शब्दार्थ - जंबू - हे जम्बू, तइयं - तीसरा, अदिण्णादाणं - बिना दी हुई वस्तु लेना, हर - हरण करना, दह - जलाना, मरण - मार डालना, भय - डराना, कलुस - क्लेशित करना, तासण - त्रास देना, परसंतिग - पराये धन में, अभेज - रौद्रध्यान युक्त, लोभमूल - लोभ का मूल, कालविसमसंसियं - विषम काल और विषम स्थान में, अहोऽच्छिण्णतण्हपत्थाणपत्थोइमइयं - जिनकी अधोगति की ओर प्रस्थान करने वाली तृष्णा अच्छिन्न है, जिनकी बुद्धि अधोगति में ले जाने । वाली है, अकित्तिकरणं - अकीर्ति-निदा कारक है, अणज - अनार्य है, छिद्द - छिद्र करना या देखना. भीत में सेंध लगाना, अंतर - ताक में रहना, विहुरवसणमग्गण - कष्ट एवं उपद्रव करने की योजना
अथवा ताक में रहना, उस्सव - लग्नादि उत्स, मत्तप्पमत्त - मद्यपानादि से मत्त-असावधान, पसुत्त - सोये हुए..वंचणक्खिवण - वंचित कर उच्चाटन या घबराहट उत्पन्न कर, घायणपरं - घात करने में तत्पर, अणिहुयपरिणामं - अशान्त परिणाम वाले, तक्करजणबहुमयं - चोर लोगों के द्वारा अतिमान्य, अकलुणं - करुणा से रहित, रायपुरिसरक्खियं - जनरक्षार्थ राज्य-पुरुषों से निषिद्ध, सया साहुगरहणिजं - साधुजनों द्वारा सदैव निन्दित; पियजण मित्तजण-भेय-विप्पिइकारगं - प्रिय एवं मित्रजनों से भेद उत्पन्न करने वाला और प्रीति का नाशक, राग दोसबहुलं - राग-द्वेष से भरपूर, पुणो यफिर यह, उप्पूर - प्रचूर, समरसंगामडमर - जनसंहारक संग्राम एवं विग्रह का स्थान, कलिकलहवेहकरणं - उग्र एवं भयानक क्लेश एवं पश्चात्ताप जनक, दुग्गइ-विणिवायवडणं - दुर्गति का वेग बढ़ाने वाला, भवपुणब्भवकर - जन्म-मरण बढ़ाने वाला, चिरपरिचिय - चिर-अनादि काल से परिचित, मणुगयं - अनुगत-साथ रहा हुआ, दुरंतं - जिसका अत्यन्त कठिनाई से अन्त हो, अहम्मदारं - अधर्मद्वार।
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