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उभय- घातक
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भूमि प्राप्त करने अथवा बेचने के लिए झूठ बोलना । अच्छी को बुरी, बुरी को
भोमालीक अच्छी बतलाना ।
कन्यालीक - कन्या देने या प्राप्त करने में असत्य भाषण करना, दोष को गुण अथवा गुण को दोष बतलाना ।
गवालीक - गाय, भैंस, बैल, घोड़ा आदि पशुओं के विषय में असत्य बोलकर स्वार्थ साधना । परमार्थ भेदक परम अर्थ - उत्कृष्टतम प्रयोजन, विशुद्धतम ध्येय अर्थात् मोक्ष का उद्देश्य । आत्मा को परमात्म दशा प्राप्त कराने का लक्ष्य। इस परमार्थ का भेदक = मोक्ष मार्ग को नष्ट करने वाला । मोक्ष-मार्ग से जीवों को हटाने का प्रयत्न करने वाला। धर्म के नाम से अधर्म का प्रचार करने वाला - परमार्थ-भेद है।
दुर्दृष्ट- जिसकी दृष्टि बुरी है, जो मिथ्यादृष्टि है, जो कुमार्ग दिखाने वाला है। जो धर्म धर्म के रूप में देखता और दूसरों को दिखाता है ।
दुःश्रुत - जिसके वचन सुनने योग्य नहीं । सत्यवादी एवं धर्मात्मा जिसके वचन सुनना नहीं चाहते।
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अमुणियं अमुणित (अज्ञात) जिसका आशय समझ में नहीं आ सके। मायाचारी झूठे व्यक्ति के शब्दों के पीछे जो भाव होता है, वह सुनने वालों की समझ में नहीं आता।
जरा - बुढ़ापा । वैसे बुढ़ापा सभी लम्बी आयु वालों को आता है, किन्तु पापकर्मों के विशेष उदय वाले जीव के युवावस्था में भी जरा जैसी दशा प्राप्त हो जाती है। वह युवावस्था में भी बुढ़ापे - सी अवस्था का अनुभव करता है। उसकं, युवावस्था में भी अंग-प्रत्यंग शिथिल, रोगग्रस्त एवं जीर्णरहते हैं । इस प्रकार पापोदय वाले जीवों को जरावस्था का दुःख चिरकाल पर्यन्त रहता है ।
उभय- घातक
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अलियाहिसंधि-सण्णिविट्ठा असंतगुणुदीरया य संतगुणणासगा य हिंसा भूओवघाइयं अलियं संपउत्ता वयणं सावज्जमकुसलं साहुगरहणिजं अहम्मजणणं भांति अणभिगय-पुण्णपावा पुणो वि अहिगरण - किरिया - पवत्तगा बहुविहं अणत्यं अवमहं अप्पणो परस्स य करेंति ।
शब्दार्थ - अलियाहि संधि सगिविट्ठा - जिनका आशय मिथ्या होता है वे, असंतगुणुदीरयाजिनमें गुण नहीं है, उनमें गुण बताने वाले, संतगुणणासंगा- जिनमें जो गुण हैं, उनके नाशक- लोपक, हिंसा भूओवघाइयं जीवों की हिंसा तथा उपघात करने वाले, अलियं संपउत्ता- झूठ बोलने में प्रवृत्त, वयणं - वचन, सावज्जं सावद्य पापकारी, अकुसलं अहितकारी, साहुगरहणिज्जं सज्जनों द्वारा गर्हित, अहम्मजणणं - अधर्मजनक, भांति - बोलते हैं, अणभिगय अनभिज्ञ, पुण्णपावा पुण्य
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