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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०२ ****************************************************
___- 'यदि तुम्हें नियति से ही यह देवर्द्धि प्राप्त हुई है, तो अन्य जीवों को-मनुष्यों, पशु-पक्षियों और कीडों-मकोडों को ऐसी ऋद्धि क्यों नहीं मिली? उनकी भवितव्यता में कौन बाधक बना?'
इस प्रश्न ने देव को अवाक् कर दिया। वह निरुत्तर हो गया। वह समझ गया कि इस विभिन्नता का कारण प्रत्येक प्राणी का पुरुषार्थ है। भगवान् महावीर ने कुंडकौलिक के इस उत्तर की प्रशंसा की।
उपासकदसा सूत्र के ७ वें अध्ययन में नियतिवादी गोशालकमति सद्दालपुत्र से स्वयं भगवान् महावीर का वाद हुआ था। भगवान् महावीर, कुंभकार सद्दालपुत्र की कुंभकार शाला में ठहरे थे। अन्यदा कुंभकार अपने मिट्टी के बरतन सुखाने के लिए धूप में रख रहा था, तंब भगवान् महावीर ने उससे पूछा
"सद्दालपुत्र! ये मिट्टी के बरतन कैसे बने-किसने बनाये?"
"भगवन्! यह पहले मिट्टी थी। मिट्टी में पानी मिला, राख मिली, चाक पर चढ़ा और बरतन बन । गए" - सद्दाल ने अपने सिद्धान्त का निर्वाह करते हुए कहा।
"सद्दालपुत्र! ये पात्र पुरुषार्थ-उद्यम से बने या बिना किसी के उद्यम किये, यों ही बन गए'- " भगवान् ने फिर पूछा। ____ "भगवन्! ये पात्र बिना पुरुषार्थ के ही बन गए। इनके बनने में पुरुषार्थ नहीं लगा।"-अपने मत का बचाव करते हुए कुंभकार ने कहा।
"सद्दालपुत्र! इन बरतनों को कोई उठा कर ले जाये, चुरा ले या तोड़-फोड़ दे, तो तुम चुपचाप रहोगे? इन्हें बचाने का प्रयत्न नहीं करोगे? उस चुराने या तोड़-फोड़ करने वाले पर तुम क्रोध नहीं करोगे? फिर सुनो-यदि कोई कामुक व्यक्ति तुम्हारी पत्नी-अग्निमित्रों के साथ कुकर्म करने की चेष्टा करे, तो क्या तुम भवितव्यता को पकड़े रहकर चुप ही रहोगे" - भगवान् महावीर ने प्रबल युक्ति उपस्थित की।
___- "भगवन् ! मैं चुप कैसे रहूँगा? मैं उस दुराचारी को मारूंगा, पीयूँगा और उसका प्राणान्त भी कर दूंगा।" - किंचित् आवेश के साथ सद्दालपुत्र ने कहा।
- "सद्दालपुत्र! ऐसा करना तो तुम्हारे मान्य नियतिवाद के विरुद्ध होगा। जब बरतनों का बननाबिगड़ना, चोरी जाना, टूटना और तुम्हारी पत्नी के साथ कुकर्म करना-ये सब नियतिवाद के आधीन हैं। इनमें किसी का कुछ भी पुरुषार्थ नहीं है, तो तुम किसी दूसरे को दण्ड कैसे दे सकते हो? तुम्हें तो अपने सिद्धान्त के अनुसार चुप ही रहना चाहिए। यदि तुम क्रुद्ध होकर दण्ड देते हो, तो तुम्हारा सिद्धान्त मिथ्या ठहरता है"-भगवान् ने नियतिवाद की एकान्तता का खोखलापन सिद्ध किया।
सद्दालपुत्र नियतिवाद में रहे हुए मिथ्यात्व को समझ गया और उसका त्याग करके भगवान् का उपासक बन गया।
टीकाकार ने यहां कालवाद का भी उल्लेख किया है। कालवादी कहता है कि -
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