________________
७४
प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ०२ ************************************************************** हुआ है। उसमें (१४-३०-२८) लिखा है कि प्रजापति ने प्राणाधिष्ठायक देवों के साथ स्तुति करके प्रजा उत्पन्न की। उसने पहले वाणी के साथ स्तुति की, जिसमें प्रजापति के गर्भ रह गया और प्रजा उत्पन्न हुई।
"बृहदारण्यक' उपनिषद में तो प्रजापति की सृष्टि का घृणित रूप दिखाया गया है। यथा -
"स वै नैव रेमे तस्मादेकाकी न रमते। स द्वितीयमैच्छत्। स हैता वानास यथा स्त्री पुमांसौ संपरिष्वक्ती स इममेवात्मानं द्वधाऽपायत्तत: पतिश्य पत्नी चा भवता......मनुष्या अजायन्त।"
. (१-४-३) अर्थ - एकाकी प्रजापति को चैन नहीं पड़ा। वह दूसरे की इच्छा करने लगा। वह आलिंगित स्त्री-पुरुष युगल के समान बड़ा हो गया। बाद में प्रजापति ने अपने दो भाग किये। एक भाग पति और दूसरा भाग पत्नी रूप हुआ। पुरुष भाग ने स्त्री-भाग के साथ क्रीड़ा की, जिससे मनुष्य उत्पन्न हुए।
"साहेयमीक्षांचक्रे कथं नु मात्मन एव जनयित्वा संभवति हंत तिरोऽसानीति सा गौरभवदूषभ इतरस्तां समेवाभवत् ततो गावोऽजायन्त। वडवेतराभवदश्ववृष इतरः। गर्दभीतरा गर्दभइतरस्तां समेवाभवत्तत एकशफमजायत......यदिदं किंच मिथुन मापीपिल्लिकाभ्यस्तत्सर्वं मसृजत।"
(१-४-४) अर्थ - स्त्री भाग का नाम शतरूपा रखा गया। उसने विचार किया - "मैं प्रजापति की पुत्री हूँ। मुझे उसने उत्पन्न किया है। पिता के साथ पुत्री का समागम स्मृति से निषिद्ध है। यह क्या अकृत्य हो गया? अब मैं कहाँ जाकर छिपूँ?" इस प्रकार सोचकर वह गाय बन गई। तब प्रजापति ने बैल बनकर उसके साथ संभोग किया, जिससे गायें उत्पन्न हुई। शतरूपा घोड़ी बनी, तो प्रजापति ने घोड़ा बनकर समागम किया और अश्वसृष्टि हुई। इसी प्रकार शतरूपा गधी, बकरी, भेड़ आदि बनी, तो प्रजापति गधा, बकरा, भेड़ा आदि बनकर संभोग करता रहा और वैसी प्रजा उत्पन्न होती रही। इस प्रकार प्रत्येक प्राणी के युगल बनते-बनते चींटियों तक की उत्पत्ति हो गई। .
कैसी घृणित कल्पना की गई है ? इसके सिवाय 'एतरेय ब्राह्मण' (३-३-९) की कल्पना है कि
"प्रजापति स्वां दुहितरमभ्यध्यायत्। तमृश्यो भूत्वा रोहितं भूतासभ्यत्तं देवा अपश्यन्नकृतं वै प्रजापतिः करोतीति ते तमैच्छन्य एन मारिष्यत्येतमन्योऽन्यस्मिन्नाविन्द......।
अर्थ - प्रजापति ने अपनी पुत्री को पत्नी बनाने का विचार किया। उसने मृग बनकर लाल-वर्ण वाली मृगीरूप पुत्री के साथ संभोग किया। यह देवों ने देखा। देवों ने सोचा-प्रजापति अकृत्य कर रहा है। इसलिए इसे मार डालना चाहिए।
देवगण प्रजापति को मारने योग्य व्यक्ति को ढूँढने लगे। उनमें कोई भी ऐसा समर्थ नहीं था। इसलिए जो देव उग्र एवं घोर शरीर वाले थे, वे सभी मिलकर एक महान् शरीरधारी देव बने। उसका नाम 'रुद्र' रखा गया। वह शरीर भूतों से निष्पन्न हुआ, इसलिए उसका दूसरा नाम -'भूतवत्' या
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org